سوره يوسف: تفاوت میان نسخهها
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{{ سوره | نام =سوره يوسف | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::53|٥٣]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::12|١٢]] | آیه = [[تعداد آیات::111|١١١]] | بعدی = سوره الرعد | قبلی = سوره هود | کلمه = [[تعداد کلمات::1987|١٩٨٧]] | حرف = }} | {{ سوره | نام =سوره يوسف | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::53|٥٣]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::12|١٢]] | آیه = [[تعداد آیات::111|١١١]] | بعدی = سوره الرعد | قبلی = سوره هود | کلمه = [[تعداد کلمات::1987|١٩٨٧]] | حرف = }} | ||
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|''' لیست آیات ''' | |||
[[ يوسف ١ | ١ ]] [[ يوسف ٢ | ٢ ]] [[ يوسف ٣ | ٣ ]] [[ يوسف ٤ | ٤ ]] [[ يوسف ٥ | ٥ ]] [[ يوسف ٦ | ٦ ]] [[ يوسف ٧ | ٧ ]] [[ يوسف ٨ | ٨ ]] [[ يوسف ٩ | ٩ ]] [[ يوسف ١٠ | ١٠ ]] [[ يوسف ١١ | ١١ ]] [[ يوسف ١٢ | ١٢ ]] [[ يوسف ١٣ | ١٣ ]] [[ يوسف ١٤ | ١٤ ]] [[ يوسف ١٥ | ١٥ ]] [[ يوسف ١٦ | ١٦ ]] [[ يوسف ١٧ | ١٧ ]] [[ يوسف ١٨ | ١٨ ]] [[ يوسف ١٩ | ١٩ ]] [[ يوسف ٢٠ | ٢٠ ]] [[ يوسف ٢١ | ٢١ ]] [[ يوسف ٢٢ | ٢٢ ]] [[ يوسف ٢٣ | ٢٣ ]] [[ يوسف ٢٤ | ٢٤ ]] [[ يوسف ٢٥ | ٢٥ ]] [[ يوسف ٢٦ | ٢٦ ]] [[ يوسف ٢٧ | ٢٧ ]] [[ يوسف ٢٨ | ٢٨ ]] [[ يوسف ٢٩ | ٢٩ ]] [[ يوسف ٣٠ | ٣٠ ]] [[ يوسف ٣١ | ٣١ ]] [[ يوسف ٣٢ | ٣٢ ]] [[ يوسف ٣٣ | ٣٣ ]] [[ يوسف ٣٤ | ٣٤ ]] [[ يوسف ٣٥ | ٣٥ ]] [[ يوسف ٣٦ | ٣٦ ]] [[ يوسف ٣٧ | ٣٧ ]] [[ يوسف ٣٨ | ٣٨ ]] [[ يوسف ٣٩ | ٣٩ ]] [[ يوسف ٤٠ | ٤٠ ]] [[ يوسف ٤١ | ٤١ ]] [[ يوسف ٤٢ | ٤٢ ]] [[ يوسف ٤٣ | ٤٣ ]] [[ يوسف ٤٤ | ٤٤ ]] [[ يوسف ٤٥ | ٤٥ ]] [[ يوسف ٤٦ | ٤٦ ]] [[ يوسف ٤٧ | ٤٧ ]] [[ يوسف ٤٨ | ٤٨ ]] [[ يوسف ٤٩ | ٤٩ ]] [[ يوسف ٥٠ | ٥٠ ]] [[ يوسف ٥١ | ٥١ ]] [[ يوسف ٥٢ | ٥٢ ]] [[ يوسف ٥٣ | ٥٣ ]] [[ يوسف ٥٤ | ٥٤ ]] [[ يوسف ٥٥ | ٥٥ ]] [[ يوسف ٥٦ | ٥٦ ]] [[ يوسف ٥٧ | ٥٧ ]] [[ يوسف ٥٨ | ٥٨ ]] [[ يوسف ٥٩ | ٥٩ ]] [[ يوسف ٦٠ | ٦٠ ]] [[ يوسف ٦١ | ٦١ ]] [[ يوسف ٦٢ | ٦٢ ]] [[ يوسف ٦٣ | ٦٣ ]] [[ يوسف ٦٤ | ٦٤ ]] [[ يوسف ٦٥ | ٦٥ ]] [[ يوسف ٦٦ | ٦٦ ]] [[ يوسف ٦٧ | ٦٧ ]] [[ يوسف ٦٨ | ٦٨ ]] [[ يوسف ٦٩ | ٦٩ ]] [[ يوسف ٧٠ | ٧٠ ]] [[ يوسف ٧١ | ٧١ ]] [[ يوسف ٧٢ | ٧٢ ]] [[ يوسف ٧٣ | ٧٣ ]] [[ يوسف ٧٤ | ٧٤ ]] [[ يوسف ٧٥ | ٧٥ ]] [[ يوسف ٧٦ | ٧٦ ]] [[ يوسف ٧٧ | ٧٧ ]] [[ يوسف ٧٨ | ٧٨ ]] [[ يوسف ٧٩ | ٧٩ ]] [[ يوسف ٨٠ | ٨٠ ]] [[ يوسف ٨١ | ٨١ ]] [[ يوسف ٨٢ | ٨٢ ]] [[ يوسف ٨٣ | ٨٣ ]] [[ يوسف ٨٤ | ٨٤ ]] [[ يوسف ٨٥ | ٨٥ ]] [[ يوسف ٨٦ | ٨٦ ]] [[ يوسف ٨٧ | ٨٧ ]] [[ يوسف ٨٨ | ٨٨ ]] [[ يوسف ٨٩ | ٨٩ ]] [[ يوسف ٩٠ | ٩٠ ]] [[ يوسف ٩١ | ٩١ ]] [[ يوسف ٩٢ | ٩٢ ]] [[ يوسف ٩٣ | ٩٣ ]] [[ يوسف ٩٤ | ٩٤ ]] [[ يوسف ٩٥ | ٩٥ ]] [[ يوسف ٩٦ | ٩٦ ]] [[ يوسف ٩٧ | ٩٧ ]] [[ يوسف ٩٨ | ٩٨ ]] [[ يوسف ٩٩ | ٩٩ ]] [[ يوسف ١٠٠ | ١٠٠ ]] [[ يوسف ١٠١ | ١٠١ ]] [[ يوسف ١٠٢ | ١٠٢ ]] [[ يوسف ١٠٣ | ١٠٣ ]] [[ يوسف ١٠٤ | ١٠٤ ]] [[ يوسف ١٠٥ | ١٠٥ ]] [[ يوسف ١٠٦ | ١٠٦ ]] [[ يوسف ١٠٧ | ١٠٧ ]] [[ يوسف ١٠٨ | ١٠٨ ]] [[ يوسف ١٠٩ | ١٠٩ ]] [[ يوسف ١١٠ | ١١٠ ]] [[ يوسف ١١١ | ١١١ ]] | [[ يوسف ١ | ١ ]] [[ يوسف ٢ | ٢ ]] [[ يوسف ٣ | ٣ ]] [[ يوسف ٤ | ٤ ]] [[ يوسف ٥ | ٥ ]] [[ يوسف ٦ | ٦ ]] [[ يوسف ٧ | ٧ ]] [[ يوسف ٨ | ٨ ]] [[ يوسف ٩ | ٩ ]] [[ يوسف ١٠ | ١٠ ]] [[ يوسف ١١ | ١١ ]] [[ يوسف ١٢ | ١٢ ]] [[ يوسف ١٣ | ١٣ ]] [[ يوسف ١٤ | ١٤ ]] [[ يوسف ١٥ | ١٥ ]] [[ يوسف ١٦ | ١٦ ]] [[ يوسف ١٧ | ١٧ ]] [[ يوسف ١٨ | ١٨ ]] [[ يوسف ١٩ | ١٩ ]] [[ يوسف ٢٠ | ٢٠ ]] [[ يوسف ٢١ | ٢١ ]] [[ يوسف ٢٢ | ٢٢ ]] [[ يوسف ٢٣ | ٢٣ ]] [[ يوسف ٢٤ | ٢٤ ]] [[ يوسف ٢٥ | ٢٥ ]] [[ يوسف ٢٦ | ٢٦ ]] [[ يوسف ٢٧ | ٢٧ ]] [[ يوسف ٢٨ | ٢٨ ]] [[ يوسف ٢٩ | ٢٩ ]] [[ يوسف ٣٠ | ٣٠ ]] [[ يوسف ٣١ | ٣١ ]] [[ يوسف ٣٢ | ٣٢ ]] [[ يوسف ٣٣ | ٣٣ ]] [[ يوسف ٣٤ | ٣٤ ]] [[ يوسف ٣٥ | ٣٥ ]] [[ يوسف ٣٦ | ٣٦ ]] [[ يوسف ٣٧ | ٣٧ ]] [[ يوسف ٣٨ | ٣٨ ]] [[ يوسف ٣٩ | ٣٩ ]] [[ يوسف ٤٠ | ٤٠ ]] [[ يوسف ٤١ | ٤١ ]] [[ يوسف ٤٢ | ٤٢ ]] [[ يوسف ٤٣ | ٤٣ ]] [[ يوسف ٤٤ | ٤٤ ]] [[ يوسف ٤٥ | ٤٥ ]] [[ يوسف ٤٦ | ٤٦ ]] [[ يوسف ٤٧ | ٤٧ ]] [[ يوسف ٤٨ | ٤٨ ]] [[ يوسف ٤٩ | ٤٩ ]] [[ يوسف ٥٠ | ٥٠ ]] [[ يوسف ٥١ | ٥١ ]] [[ يوسف ٥٢ | ٥٢ ]] [[ يوسف ٥٣ | ٥٣ ]] [[ يوسف ٥٤ | ٥٤ ]] [[ يوسف ٥٥ | ٥٥ ]] [[ يوسف ٥٦ | ٥٦ ]] [[ يوسف ٥٧ | ٥٧ ]] [[ يوسف ٥٨ | ٥٨ ]] [[ يوسف ٥٩ | ٥٩ ]] [[ يوسف ٦٠ | ٦٠ ]] [[ يوسف ٦١ | ٦١ ]] [[ يوسف ٦٢ | ٦٢ ]] [[ يوسف ٦٣ | ٦٣ ]] [[ يوسف ٦٤ | ٦٤ ]] [[ يوسف ٦٥ | ٦٥ ]] [[ يوسف ٦٦ | ٦٦ ]] [[ يوسف ٦٧ | ٦٧ ]] [[ يوسف ٦٨ | ٦٨ ]] [[ يوسف ٦٩ | ٦٩ ]] [[ يوسف ٧٠ | ٧٠ ]] [[ يوسف ٧١ | ٧١ ]] [[ يوسف ٧٢ | ٧٢ ]] [[ يوسف ٧٣ | ٧٣ ]] [[ يوسف ٧٤ | ٧٤ ]] [[ يوسف ٧٥ | ٧٥ ]] [[ يوسف ٧٦ | ٧٦ ]] [[ يوسف ٧٧ | ٧٧ ]] [[ يوسف ٧٨ | ٧٨ ]] [[ يوسف ٧٩ | ٧٩ ]] [[ يوسف ٨٠ | ٨٠ ]] [[ يوسف ٨١ | ٨١ ]] [[ يوسف ٨٢ | ٨٢ ]] [[ يوسف ٨٣ | ٨٣ ]] [[ يوسف ٨٤ | ٨٤ ]] [[ يوسف ٨٥ | ٨٥ ]] [[ يوسف ٨٦ | ٨٦ ]] [[ يوسف ٨٧ | ٨٧ ]] [[ يوسف ٨٨ | ٨٨ ]] [[ يوسف ٨٩ | ٨٩ ]] [[ يوسف ٩٠ | ٩٠ ]] [[ يوسف ٩١ | ٩١ ]] [[ يوسف ٩٢ | ٩٢ ]] [[ يوسف ٩٣ | ٩٣ ]] [[ يوسف ٩٤ | ٩٤ ]] [[ يوسف ٩٥ | ٩٥ ]] [[ يوسف ٩٦ | ٩٦ ]] [[ يوسف ٩٧ | ٩٧ ]] [[ يوسف ٩٨ | ٩٨ ]] [[ يوسف ٩٩ | ٩٩ ]] [[ يوسف ١٠٠ | ١٠٠ ]] [[ يوسف ١٠١ | ١٠١ ]] [[ يوسف ١٠٢ | ١٠٢ ]] [[ يوسف ١٠٣ | ١٠٣ ]] [[ يوسف ١٠٤ | ١٠٤ ]] [[ يوسف ١٠٥ | ١٠٥ ]] [[ يوسف ١٠٦ | ١٠٦ ]] [[ يوسف ١٠٧ | ١٠٧ ]] [[ يوسف ١٠٨ | ١٠٨ ]] [[ يوسف ١٠٩ | ١٠٩ ]] [[ يوسف ١١٠ | ١١٠ ]] [[ يوسف ١١١ | ١١١ ]] | ||
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==متن سوره== | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ الر تِلكَ إيٰتُ الكِتٰبِ المُبينِ (١) ]] }} | |||
الر. اینها آیات (آن) کتاب روشنگر است. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢ | إِنّا أَنزَلنٰهُ قُرءٰنًا عَرَبِيًّا لَعَلَّكُم تَعقِلونَ (٢) ]] }} | |||
ما بیگمان آن را قرآنی روشنبیان نازل کردیم، شاید شما (آن را) دریابید. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣ | نَحنُ نَقُصُّ عَلَيكَ أَحسَنَ القَصَصِ بِما أَوحَينا إِلَيكَ هٰذَا القُرإنَ وَ إِن كُنتَ مِن قَبلِهِ لَمِنَ الغٰفِلينَ (٣) ]] }} | |||
ما نیکوترین برشهای پیگیر تاریخی را به موجب این قرآن -که به تو وحی کردیم- بر تو حکایت میکنیم؛ و گرچه پیش از آن همانا از غافلان بودهای. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤ | إِذ قالَ يوسُفُ لِأَبيهِ يٰأَبَتِ إِنّى رَأَيتُ أَحَدَ عَشَرَ كَوكَبًا وَ الشَّمسَ وَ القَمَرَ رَأَيتُهُم لى سٰجِدينَ (٤) ]] }} | |||
هنگامی که یوسف به پدرش گفت: «پدرم! (در خواب) یازده ستاره را با خورشید و ماه دیدم. آنان را دیدم (که) برای من (به محضر خدا) در حال سجدهاند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥ | قالَ يٰبُنَىَّ لا تَقصُص رُءياكَ عَلىٰ إِخوَتِكَ فَيَكيدوا لَكَ كَيدًا إِنَّ الشَّيطٰنَ لِلإِنسٰنِ عَدُوٌّ مُبينٌ (٥) ]] }} | |||
(یعقوب) گفت: «ای پسرک من! خوابت را برای برادرانت حکایت مکن تا برای تو نیرنگی اندیشند. شیطان بیامان برای انسان دشمنی آشکارگر است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦ | وَ كَذٰلِكَ يَجتَبيكَ رَبُّكَ وَ يُعَلِّمُكَ مِن تَأويلِ الأَحاديثِ وَ يُتِمُّ نِعمَتَهُ عَلَيكَ وَ عَلىٰ إلِ يَعقوبَ كَما أَتَمَّها عَلىٰ أَبَوَيكَ مِن قَبلُ إِبرٰهيمَ وَ إِسحٰقَ إِنَّ رَبَّكَ عَليمٌ حَكيمٌ (٦) ]] }} | |||
«و این چنین، پروردگارت تو را بر میگزیند و برخی از تعبیر حوادث و خوابها را به تو میآموزد، و نعمتش را بر تو و بر خاندان یعقوب به اتمام میرساند، همانگونه که از پیش بر پدرانت، ابراهیم و اسحاق، به اتمام رسانید. بهراستی، پروردگارت بس دانایی حکیم است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧ | لَقَد كانَ فى يوسُفَ وَ إِخوَتِهِ إيٰتٌ لِلسّائِلينَ (٧) ]] }} | |||
بهراستی و درستی در (سرگذشت) یوسف و برادرانش برای پرسندگان نشانههایی بودهاست. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨ | إِذ قالوا لَيوسُفُ وَ أَخوهُ أَحَبُّ إِلىٰ أَبينا مِنّا وَ نَحنُ عُصبَةٌ إِنَّ أَبانا لَفى ضَلٰلٍ مُبينٍ (٨) ]] }} | |||
چون (برادران او) گفتند: «همواره یوسف و برادرش نزد پدرمان از ما - که جمعی نیرومندیم -دوستداشتنیترند. بیامان پدرمان غرق در (ژرفای) گمراهی آشکارگری است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩ | اقتُلوا يوسُفَ أَوِ اطرَحوهُ أَرضًا يَخلُ لَكُم وَجهُ أَبيكُم وَ تَكونوا مِن بَعدِهِ قَومًا صٰلِحينَ (٩) ]] }} | |||
(گفتند:) «یوسف را بکشید یا او را به سرزمینی بیندازید، تا توجه پدرتان تنها برایتان گردد، و تا پس از او گروهی شایسته باشید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠ | قالَ قائِلٌ مِنهُم لا تَقتُلوا يوسُفَ وَ أَلقوهُ فى غَيٰبَتِ الجُبِّ يَلتَقِطهُ بَعضُ السَّيّارَةِ إِن كُنتُم فٰعِلينَ (١٠) ]] }} | |||
گویندهای از میان آنان گفت: «یوسف را مکشید و اگر انجامدهندهی کاری هستید، او را در نهانخانهی (آن) چاه بیفکنید، تا برخی از مسافران او را دریابند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١١ | قالوا يٰأَبانا ما لَكَ لا تَأمَ۫نّا عَلىٰ يوسُفَ وَ إِنّا لَهُ لَنٰصِحونَ (١١) ]] }} | |||
گفتند: «ای پدر! تو را چه شده که ما را بر یوسف امین نمیداری، حال آنکه ما بهدرستی به سود او بهراستی نصیحتگرانیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٢ | أَرسِلهُ مَعَنا غَدًا يَرتَع وَ يَلعَب وَ إِنّا لَهُ لَحٰفِظونَ (١٢) ]] }} | |||
«فردا او را با ما بفرست تا در چمنزارها بگردد و بازی کند، و ما بهراستی نگهبان ویژهی (بایسته و شایستهی) اوییم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٣ | قالَ إِنّى لَيَحزُنُنى أَن تَذهَبوا بِهِ وَ أَخافُ أَن يَأكُلَهُ الذِّئبُ وَ أَنتُم عَنهُ غٰفِلونَ (١٣) ]] }} | |||
گفت: «اینکه او را ببرید همواره سخت مرا اندوهگین میکند، و میترسم -در حالی که از او در غفلتید- گرگ او را بخورد.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٤ | قالوا لَئِن أَكَلَهُ الذِّئبُ وَ نَحنُ عُصبَةٌ إِنّا إِذًا لَخٰسِرونَ (١٤) ]] }} | |||
گفتند: «اگر بهراستی گرگ او را بخورد - حال آنکه ما گروهی نیرومند و متحدیم - در آن صورت ما بیچون گروهی بس زیانکار (و بیبندوبار) خواهیم بود.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٥ | فَلَمّا ذَهَبوا بِهِ وَ أَجمَعوا أَن يَجعَلوهُ فى غَيٰبَتِ الجُبِّ وَ أَوحَينا إِلَيهِ لَتُنَبِّئَنَّهُم بِأَمرِهِم هٰذا وَ هُم لا يَشعُرونَ (١٥) ]] }} | |||
پس هنگامیکه او را بردند و همداستان شدند تا او را در نهانخانهی (آن) چاه بیفکنند، و سوی او وحی کردیم که بهراستی آنان را همانا از این کارشان - در حالیکه باریکبینی نمیکنند - با خبری مهم آگاه خواهیکرد. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٦ | وَ جاءو أَباهُم عِشاءً يَبكونَ (١٦) ]] }} | |||
و شامگاهان، گریان نزد پدرشان (باز) آمدند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٧ | قالوا يٰأَبانا إِنّا ذَهَبنا نَستَبِقُ وَ تَرَكنا يوسُفَ عِندَ مَتٰعِنا فَأَكَلَهُ الذِّئبُ وَ ما أَنتَ بِمُؤمِنٍ لَنا وَ لَو كُنّا صٰدِقينَ (١٧) ]] }} | |||
گفتند: «ای پدر! بهراستی ما رفتیم مسابقه بدهیم، و یوسف را پیش کالای خود نهادیم، پس گرگ او را خورد، ولی تو ما را -هر چند راستگو (هم) باشیم- باورکننده نیستی.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٨ | وَ جاءو عَلىٰ قَميصِهِ بِدَمٍ كَذِبٍ قالَ بَل سَوَّلَت لَكُم أَنفُسُكُم أَمرًا فَصَبرٌ جَميلٌ وَ اللَّهُ المُستَعانُ عَلىٰ ما تَصِفونَ (١٨) ]] }} | |||
و (پرچموار) با پیراهنش که آغشته به خونی دروغین بود آمدند. (یعقوب) گفت: «(نه!) بلکه نفوس امارهی شما کاری (دروغین) را برایتان آراسته است. پس (اینک جای) صبری زیباست. و بر آنچه توصیف میکنید، تنها یاری (از) خداست.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٩ | وَ جاءَت سَيّارَةٌ فَأَرسَلوا وارِدَهُم فَأَدلىٰ دَلوَهُ قالَ يٰبُشرىٰ هٰذا غُلٰمٌ وَ أَسَرّوهُ بِضٰعَةً وَ اللَّهُ عَليمٌ بِما يَعمَلونَ (١٩) ]] }} | |||
و کاروانی رهسپار آمد. پس (کارگر) آبآور خود را فرو فرستادند (و) او دلوش را (به آن چاه) انداخت. گفت: «مژده! این یک پسری است!» و او را چون کالایی پنهان داشتند، حال آنکه خدا به آنچه میکردند بسی داناست. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٠ | وَ شَرَوهُ بِثَمَنٍ بَخسٍ دَرٰهِمَ مَعدودَةٍ وَ كانوا فيهِ مِنَ الزّٰهِدينَ (٢٠) ]] }} | |||
و او را به بهایی ناچیز- چند درهم کم شمار- فروختند، و در آن از زاهدان [:بیاعتنایان و کمجویان] بودند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢١ | وَ قالَ الَّذِى اشتَرىٰهُ مِن مِصرَ لِامرَأَتِهِ أَكرِمى مَثوىٰهُ عَسىٰ أَن يَنفَعَنا أَو نَتَّخِذَهُ وَلَدًا وَ كَذٰلِكَ مَكَّنّا لِيوسُفَ فِى الأَرضِ وَ لِنُعَلِّمَهُ مِن تَأويلِ الأَحاديثِ وَ اللَّهُ غالِبٌ عَلىٰ أَمرِهِ وَ لٰكِنَّ أَكثَرَ النّاسِ لا يَعلَمونَ (٢١) ]] }} | |||
و آن کس از مصریان که او را خریده به همسرش گفت: «جایگاه و آرامشگاهش را نیکو بدار، شاید به حال ما سود بخشد یا او را به فرزندی برگیریم.» و بدینگونه ما یوسف را در آن سرزمین مکانت بخشیدیم و برای اینکه به او تأویل حوادث و خوابها را بیاموزیم. و خدا بر کار خویش چیره است ولی بیشتر مردم نمیدانند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٢ | وَ لَمّا بَلَغَ أَشُدَّهُ إتَينٰهُ حُكمًا وَ عِلمًا وَ كَذٰلِكَ نَجزِى المُحسِنينَ (٢٢) ]] }} | |||
و چون به رشدهایش رسید، او را حاکمیتی و علمی (بسیار) دادیم. و نیکوکاران را این چنین پاداش میدهیم. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٣ | وَ رٰوَدَتهُ الَّتى هُوَ فى بَيتِها عَن نَفسِهِ وَ غَلَّقَتِ الأَبوٰبَ وَ قالَت هَيتَ لَكَ قالَ مَعاذَ اللَّهِ إِنَّهُ رَبّى أَحسَنَ مَثواىَ إِنَّهُ لا يُفلِحُ الظّٰلِمونَ (٢٣) ]] }} | |||
و آن (بانو) که یوسف در خانهاش بود با او (برای کامگیری از او) رفت و آمدهایی (شهوتزا و محبتافزا) کرد و همهی درها(ی عذر و بهانه) را به رویش بست و گفت: «وای بر تو (که به من تن نمیدهی)!» (یوسف) گفت: «پناه بر خدا! او پروردگار من است که به من جایگاهی نیکو داده است. بیگمان ستمکاران رستگار نمیکنند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٤ | وَ لَقَد هَمَّت بِهِ وَ هَمَّ بِها لَولا أَن رَإ بُرهٰنَ رَبِّهِ كَذٰلِكَ لِنَصرِفَ عَنهُ السّوءَ وَ الفَحشاءَ إِنَّهُ مِن عِبادِنَا المُخلَصينَ (٢٤) ]] }} | |||
(این زن) با اصرار و تکرار، همواره آهنگ وی کرد و (یوسف نیز) - اگر برهان پروردگارش را ندیده بود - آهنگ او میکرد. چنین (کردیم) تا بدی و زشتکاری تجاوزگر را از او بازگردانیم. بهراستی او از بندگان پاکشدهی (ویژهی) ماست. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٥ | وَ استَبَقَا البابَ وَ قَدَّت قَميصَهُ مِن دُبُرٍ وَ أَلفَيا سَيِّدَها لَدَا البابِ قالَت ما جَزاءُ مَن أَرادَ بِأَهلِكَ سوءًا إِلّا أَن يُسجَنَ أَو عَذابٌ أَليمٌ (٢٥) ]] }} | |||
و آن دو، سوی در بر یکدیگر سبقت گرفتند و آن زن پیراهن او را از پشت بدرید. و در آستانهی در ناگهان سرور زن را یافتند. زن گفت: «کیفر کسی که قصد بدی به خانوادهی تو کرده چیست؟جز اینکه زندانی شود یا (مبتلا به) عذابی دردناک (گردد).» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٦ | قالَ هِىَ رٰوَدَتنى عَن نَفسى وَ شَهِدَ شاهِدٌ مِن أَهلِها إِن كانَ قَميصُهُ قُدَّ مِن قُبُلٍ فَصَدَقَت وَ هُوَ مِنَ الكٰذِبينَ (٢٦) ]] }} | |||
(یوسف) گفت: «او با من (برای کامگیری) مراودهای (شهوتانگیز) داشت.» و شاهدی از خانوادهی آن زن شهادت داد: «اگر پیراهن او از جلو چاک خورده، زن راست گفته، و او از دروغگویان است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٧ | وَ إِن كانَ قَميصُهُ قُدَّ مِن دُبُرٍ فَكَذَبَت وَ هُوَ مِنَ الصّٰدِقينَ (٢٧) ]] }} | |||
«و اگر پیراهن او از پشت دریده شده، پس زن دروغ گفته و او از راستان است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٨ | فَلَمّا رَإ قَميصَهُ قُدَّ مِن دُبُرٍ قالَ إِنَّهُ مِن كَيدِكُنَّ إِنَّ كَيدَكُنَّ عَظيمٌ (٢٨) ]] }} | |||
پس چون (شوهرش) دید پیراهنش از پشت چاک خورده گفت: «بیگمان، این همواره از نیرنگ شما (زنان) است، بیچون نیرنگ شما (زنان) بزرگ است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٢٩ | يوسُفُ أَعرِض عَن هٰذا وَ استَغفِرى لِذَنبِكِ إِنَّكِ كُنتِ مِنَ الخاطِـٔينَ (٢٩) ]] }} | |||
«یوسف! از این (جریان) روی گردان، و تو (ای زن) برای این گناه بدپایانت پوششی بخواه که بیگمان تو از خطاکاران بودهای.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٠ | وَ قالَ نِسوَةٌ فِى المَدينَةِ امرَأَتُ العَزيزِ تُرٰوِدُ فَتىٰها عَن نَفسِهِ قَد شَغَفَها حُبًّا إِنّا لَنَرىٰها فى ضَلٰلٍ مُبينٍ (٣٠) ]] }} | |||
و زنانی در شهر گفتند: «زنِ عزیز با (غلام) جوان خود مراودههایی شهوتزا میکند [:از او کام میخواهد] و سخت دلباختهی او شده. بهراستی ما او را همواره در گمراهی آشکارگری میبینیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣١ | فَلَمّا سَمِعَت بِمَكرِهِنَّ أَرسَلَت إِلَيهِنَّ وَ أَعتَدَت لَهُنَّ مُتَّكَـًٔا وَ إتَت كُلَّ وٰحِدَةٍ مِنهُنَّ سِكّينًا وَ قالَتِ اخرُج عَلَيهِنَّ فَلَمّا رَأَينَهُ أَكبَرنَهُ وَ قَطَّعنَ أَيدِيَهُنَّ وَ قُلنَ حٰشَ لِلَّهِ ما هٰذا بَشَرًا إِن هٰذا إِلّا مَلَكٌ كَريمٌ (٣١) ]] }} | |||
پس چون (همسر عزیز) مکر زنان را شنید، نزد آنان (کسی را) فرستاد و محفلی با تکیهگاهی (فرحبخش) برایشان آماده ساخت و به هریک از آنان کاردی داد و (به یوسف) گفت: « بر (دیدار) آنان (از نهانگاهت) برون آی.» پس چون (زنان) او را دیدند، وی را بس شگرف یافتند و (از شدت هیجان) دستهای خود را (به جای میوهها) همی بریدند و گفتند: «منزّه است خدا! این بشر نیست! این جز فرشتهای بزرگوار نیست!» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٢ | قالَت فَذٰلِكُنَّ الَّذى لُمتُنَّنى فيهِ وَ لَقَد رٰوَدتُهُ عَن نَفسِهِ فَاستَعصَمَ وَ لَئِن لَم يَفعَل ما إمُرُهُ لَيُسجَنَنَّ وَ لَيَكونًا مِنَ الصّٰغِرينَ (٣٢) ]] }} | |||
(زلیخا) گفت: «این همان (فرشتهی بزرگوار) است که دربارهی او سرزنشم میکردید. بیچون، من همواره با او رفت و آمدهایی شهوتزا (برای کامگیری از او) داشتم، ولی او بسی جویا و پویای نگهبانی خود بود. و اگر آنچه را که به آن دستورش میدهم عمل نکند بهراستی زندانی شود و بیچون و بیامان از خوارشدگان گردد.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٣ | قالَ رَبِّ السِّجنُ أَحَبُّ إِلَىَّ مِمّا يَدعونَنى إِلَيهِ وَ إِلّا تَصرِف عَنّى كَيدَهُنَّ أَصبُ إِلَيهِنَّ وَ أَكُن مِنَ الجٰهِلينَ (٣٣) ]] }} | |||
(یوسف) گفت: «پروردگارم! زندان (تن) برای من از آنچه مرا به آن میخوانند دوستداشتنیتر است، و اگر نیرنگ آنان را از من بازنگردانی، کودکانه سوی آنان خواهم گرایید و از (جملهی) نادانان خواهم بود.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٤ | فَاستَجابَ لَهُ رَبُّهُ فَصَرَفَ عَنهُ كَيدَهُنَّ إِنَّهُ هُوَ السَّميعُ العَليمُ (٣٤) ]] }} | |||
پس، پروردگارش خواستهاش را برایش اجابت کرد و نیرنگ زنان را از او بازگردانید. بیگمان او، (هم)او بسیار شنوای بس داناست. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٥ | ثُمَّ بَدا لَهُم مِن بَعدِ ما رَأَوُا الإيٰتِ لَيَسجُنُنَّهُ حَتّىٰ حينٍ (٣٥) ]] }} | |||
سپس پس از دیدن آن نشانهها، به نظرشان آمد که او را بیچون تا چندی بیامان به زندان افکنند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٦ | وَ دَخَلَ مَعَهُ السِّجنَ فَتَيانِ قالَ أَحَدُهُما إِنّى أَرىٰنى أَعصِرُ خَمرًا وَ قالَ الإخَرُ إِنّى أَرىٰنى أَحمِلُ فَوقَ رَأسى خُبزًا تَأكُلُ الطَّيرُ مِنهُ نَبِّئنا بِتَأويلِهِ إِنّا نَرىٰكَ مِنَ المُحسِنينَ (٣٦) ]] }} | |||
و دو جوان با او به زندان در آمدند. یکی از آن دو گفت: «من خویشتن را (به خواب) دیدم که (انگور برای) شرابی میفشارم.» و دیگری گفت: «من خود را (به خواب) دیدم که بر روی سرم نانی میبرم و پرندگان از آن میخورند. ما را از تعبیرش خبری مهم ده، که ما تو را بهراستی از نیکوکاران میبینیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٧ | قالَ لا يَأتيكُما طَعامٌ تُرزَقانِهِ إِلّا نَبَّأتُكُما بِتَأويلِهِ قَبلَ أَن يَأتِيَكُما ذٰلِكُما مِمّا عَلَّمَنى رَبّى إِنّى تَرَكتُ مِلَّةَ قَومٍ لا يُؤمِنونَ بِاللَّهِ وَ هُم بِالإخِرَةِ هُم كٰفِرونَ (٣٧) ]] }} | |||
گفت: «غذایی را که روزی شما میگردد برای شما نمیآید مگر آنکه من از واقعیت و پیامدش به شما خبری مهم میدهم. پیش از آنکه آن غذا برایتان بیاید، این برای شما دو تن از همان چیزهایی است که پروردگارم به من آموخته. من آیین قومی را که به خدا اعتقاد ندارند - و همانانند که به روز بازپسین کافرانند - رها کردم» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٨ | وَ اتَّبَعتُ مِلَّةَ إباءى إِبرٰهيمَ وَ إِسحٰقَ وَ يَعقوبَ ما كانَ لَنا أَن نُشرِكَ بِاللَّهِ مِن شَيءٍ ذٰلِكَ مِن فَضلِ اللَّهِ عَلَينا وَ عَلَى النّاسِ وَ لٰكِنَّ أَكثَرَ النّاسِ لا يَشكُرونَ (٣٨) ]] }} | |||
«و آیین پدرانم -ابراهیم و اسحاق و یعقوب- را پیروی نمودم. برای ما هرگز سزاوار نبوده که هیچ چیزی را شریک خدا کنیم. این (فضیلت) از فضل خداست بر ما و بر مردم؛ ولی بیشتر مردم سپاسگزاری نمیکنند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٣٩ | يٰصىٰحِبَىِ السِّجنِ ءَأَربابٌ مُتَفَرِّقونَ خَيرٌ أَمِ اللَّهُ الوٰحِدُ القَهّارُ (٣٩) ]] }} | |||
«ای دو همراه زندانیم! آیا خدایان پراکنده بهترند یا خدای یگانهی بسی برومند و چیره؟» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٠ | ما تَعبُدونَ مِن دونِهِ إِلّا أَسماءً سَمَّيتُموها أَنتُم وَ إباؤُكُم ما أَنزَلَ اللَّهُ بِها مِن سُلطٰنٍ إِنِ الحُكمُ إِلّا لِلَّهِ أَمَرَ أَلّا تَعبُدوا إِلّا إِيّاهُ ذٰلِكَ الدّينُ القَيِّمُ وَ لٰكِنَّ أَكثَرَ النّاسِ لا يَعلَمونَ (٤٠) ]] }} | |||
«شما بجز او، جز نامهایی (بینشان) را نمیپرستید که شما و پدرانتان آنها را نامگذاری کردهاید (و) خدا دلیلی سلطهگر بر (حقانیت) آنها نازل نکرده است. فرمان جز برای خدا نیست (که) فرمان داده جز او را نپرستید. این است دین درست پایبرجا و راستا و پر بها؛ ولی بیشتر مردم نمیدانند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤١ | يٰصىٰحِبَىِ السِّجنِ أَمّا أَحَدُكُما فَيَسقى رَبَّهُ خَمرًا وَ أَمَّا الإخَرُ فَيُصلَبُ فَتَأكُلُ الطَّيرُ مِن رَأسِهِ قُضِىَ الأَمرُ الَّذى فيهِ تَستَفتِيانِ (٤١) ]] }} | |||
«ای دو همراه زندانیم! اما یکی از شما به سرور خود باده مینوشاند، (و) اما دیگری به دار آویخته میشود، سپس پرندگان از سرش میخورند. امری که شما دو تن از من جویا میشوید تحقق یافته است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٢ | وَ قالَ لِلَّذى ظَنَّ أَنَّهُ ناجٍ مِنهُمَا اذكُرنى عِندَ رَبِّكَ فَأَنسىٰهُ الشَّيطٰنُ ذِكرَ رَبِّهِ فَلَبِثَ فِى السِّجنِ بِضعَ سِنينَ (٤٢) ]] }} | |||
و (یوسف) به آن کس از آن دو که گمان میکرد نجاتیافتنی است، گفت: «مرا نزد آقای خود به یاد آور.» و (اما) شیطان، یادآوری به آقایش را از یادش برد (و) در نتیجه (یوسف) چند سالی در زندان بماند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٣ | وَ قالَ المَلِكُ إِنّى أَرىٰ سَبعَ بَقَرٰتٍ سِمانٍ يَأكُلُهُنَّ سَبعٌ عِجافٌ وَ سَبعَ سُنبُلٰتٍ خُضرٍ وَ أُخَرَ يابِسٰتٍ يٰأَيُّهَا المَلَأُ أَفتونى فى رُءيٰىَ إِن كُنتُم لِلرُّءيا تَعبُرونَ (٤٣) ]] }} | |||
و پادشاه (مصر) گفت: «من (در خواب) میبینم هفت گاو فربه را که هفت (گاو) لاغر آنها را میخوردند، و هفت خوشهی سبز و (نیز) هفت خوشهی دیگر خشکیده را. ای سران قوم! اگر خواب تعبیر میکردهاید، دربارهی خواب من، به من رأی تازهای بدهید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٤ | قالوا أَضغٰثُ أَحلٰمٍ وَ ما نَحنُ بِتَأويلِ الأَحلٰمِ بِعٰلِمينَ (٤٤) ]] }} | |||
گفتند: « (اینها) پارههایی است پراکنده از خوابهایی پریشان، و ما به تعبیر خوابهای آشفته دانا نیستیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٥ | وَ قالَ الَّذى نَجا مِنهُما وَ ادَّكَرَ بَعدَ أُمَّةٍ أَنا۠ أُنَبِّئُكُم بِتَأويلِهِ فَأَرسِلونِ (٤٥) ]] }} | |||
و آن کس از آن دو (به زندانی) که نجات یافته و پس از چندی (سخن یوسف را) به یاد آورده بود گفت: «مرا (به زندان) بفرستید تا شما را از تعبیر این (خواب) خبری مهم بدهم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٦ | يوسُفُ أَيُّهَا الصِّدّيقُ أَفتِنا فى سَبعِ بَقَرٰتٍ سِمانٍ يَأكُلُهُنَّ سَبعٌ عِجافٌ وَ سَبعِ سُنبُلٰتٍ خُضرٍ وَ أُخَرَ يابِسٰتٍ لَعَلّى أَرجِعُ إِلَى النّاسِ لَعَلَّهُم يَعلَمونَ (٤٦) ]] }} | |||
«یوسف! ای مرد بسی راستگوی راستکردار! دربارهی (این خواب که) هفت گاو فربه، هفت گاو لاغر آنها را میخورند، و هفت خوشهی سبز و هفت (خوشهی) دیگر خشکیده، به ما نظری نو بده. شاید فراسوی مردم برگردم (و) شاید آنان (تعبیر آنها را و صداقت تو را) بدانند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٧ | قالَ تَزرَعونَ سَبعَ سِنينَ دَأَبًا فَما حَصَدتُم فَذَروهُ فى سُنبُلِهِ إِلّا قَليلًا مِمّا تَأكُلونَ (٤٧) ]] }} | |||
یوسف گفت: «هفت سال پیدرپی پویا و کوشا با رنجی مداوم میکارید، پس آنچه را درویدید - جز اندکی را که میخورید - در خوشهاش واگذارید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٨ | ثُمَّ يَأتى مِن بَعدِ ذٰلِكَ سَبعٌ شِدادٌ يَأكُلنَ ما قَدَّمتُم لَهُنَّ إِلّا قَليلًا مِمّا تُحصِنونَ (٤٨) ]] }} | |||
«سپس بعد از آن، هفت سال سخت در میرسد (که) آنچه در آن سال(های سبز) از پیش نهادهاید - جز اندکی را که میاندوزید- (آن سالها) همه را خواهند خورد.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٤٩ | ثُمَّ يَأتى مِن بَعدِ ذٰلِكَ عامٌ فيهِ يُغاثُ النّاسُ وَ فيهِ يَعصِرونَ (٤٩) ]] }} | |||
«سپس، سالی در میرسد که مردم در آن (سال) از بیآبی نجات یافته (و) با باران کمک میشوند و در آن (میوه) میفشارند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٠ | وَ قالَ المَلِكُ ائتونى بِهِ فَلَمّا جاءَهُ الرَّسولُ قالَ ارجِع إِلىٰ رَبِّكَ فَسـَٔلهُ ما بالُ النِّسوَةِ الّٰتى قَطَّعنَ أَيدِيَهُنَّ إِنَّ رَبّى بِكَيدِهِنَّ عَليمٌ (٥٠) ]] }} | |||
و پادشاه گفت: «او را نزد من آورید.» پس هنگامی که آن فرستاده نزد وی آمد (یوسف) گفت: «نزد آقای خویش برگرد و از او بپرس که حالت مهم آن زنانی که دستهای خود را به شدت بریدند چگونه (بوده) است؟ بیگمان پروردگار من به نیرنگ آنان بسی آگاه است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥١ | قالَ ما خَطبُكُنَّ إِذ رٰوَدتُنَّ يوسُفَ عَن نَفسِهِ قُلنَ حٰشَ لِلَّهِ ما عَلِمنا عَلَيهِ مِن سوءٍ قالَتِ امرَأَتُ العَزيزِ الـٰٔنَ حَصحَصَ الحَقُّ أَنا۠ رٰوَدتُهُ عَن نَفسِهِ وَ إِنَّهُ لَمِنَ الصّٰدِقينَ (٥١) ]] }} | |||
(پادشاه به آن زنان) گفت: « چون از یوسف کام خواستید شما را چه مهمی روی داده بود؟» (زنان) گفتند: «منزّه است خدا! ما هیچ بدی بر یوسف ندانستیم.» همسر عزیز گفت: «اکنون حقیقت به روشنی آشکار شد. من بودم که با او مراودهی شهوتزا کردم (و از او کام خواستم) و بیگمان او بهراستی از راستان است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٢ | ذٰلِكَ لِيَعلَمَ أَنّى لَم أَخُنهُ بِالغَيبِ وَ أَنَّ اللَّهَ لا يَهدى كَيدَ الخائِنينَ (٥٢) ]] }} | |||
(یوسف گفت:) «این (درخواست اعادهی حیثیّت) برای آن بود تا (عزیز) بداند که من بیگمان در نهان به او خیانت نکردم. و خدا بیامان نیرنگ خائنان را راهنمایی نمیکند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٣ | وَ ما أُبَرِّئُ نَفسى إِنَّ النَّفسَ لَأَمّارَةٌ بِالسّوءِ إِلّا ما رَحِمَ رَبّى إِنَّ رَبّى غَفورٌ رَحيمٌ (٥٣) ]] }} | |||
«و من نفس خود را تبرئه نمیکنم (که) همواره نفس (اماره) همی امرکننده به بدی است، مگر آنچه را که خدای من رحم کند. بهراستی پروردگار من پوشندهی رحمتگر بر ویژگان است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٤ | وَ قالَ المَلِكُ ائتونى بِهِ أَستَخلِصهُ لِنَفسى فَلَمّا كَلَّمَهُ قالَ إِنَّكَ اليَومَ لَدَينا مَكينٌ أَمينٌ (٥٤) ]] }} | |||
و پادشاه گفت: «او را نزد من آورید، تا وی را برای خود برگزینم.» پس چون با او سخن به میان آورد گفت: «تو امروز بهدرستی نزد ما دارای منزلت و مکانت و امانتی بزرگ هستی.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٥ | قالَ اجعَلنى عَلىٰ خَزائِنِ الأَرضِ إِنّى حَفيظٌ عَليمٌ (٥٥) ]] }} | |||
(یوسف) گفت: «مرا به خزانهداری (این) سرزمین برگمار. بیگمان من نگهبانی بسی نیرومند و دانا هستم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٦ | وَ كَذٰلِكَ مَكَّنّا لِيوسُفَ فِى الأَرضِ يَتَبَوَّأُ مِنها حَيثُ يَشاءُ نُصيبُ بِرَحمَتِنا مَن نَشاءُ وَ لا نُضيعُ أَجرَ المُحسِنينَ (٥٦) ]] }} | |||
و بدینگونه یوسف را در سرزمین (مصر) مقام و منزلت دادیم، که از آن - هر جا که بخواهد - سکونتی هموار و راهوار میکرد. (اینگونه) هر که را بخواهیم رحمت خود را به او میرسانیم و اجر نیکوکاران را تباه نمیسازیم. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٧ | وَ لَأَجرُ الإخِرَةِ خَيرٌ لِلَّذينَ إمَنوا وَ كانوا يَتَّقونَ (٥٧) ]] }} | |||
و به راستی اجر آخرت - برای کسانی که ایمان آورده و پرهیزگاری مینمودهاند - بهتر است. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٨ | وَ جاءَ إِخوَةُ يوسُفَ فَدَخَلوا عَلَيهِ فَعَرَفَهُم وَ هُم لَهُ مُنكِرونَ (٥٨) ]] }} | |||
و برادران یوسف آمدند و بر او وارد شدند. پس آنان را شناخت حال آنکه آنان انکار (و انگار)کنندهی اویند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٥٩ | وَ لَمّا جَهَّزَهُم بِجَهازِهِم قالَ ائتونى بِأَخٍ لَكُم مِن أَبيكُم أَلا تَرَونَ أَنّى أوفِى الكَيلَ وَ أَنا۠ خَيرُ المُنزِلينَ (٥٩) ]] }} | |||
و چون آنان را به خواروبار (دلخواه زندگیساز)شان مجهّز کرد گفت: «برادر پدری خود را نزد من آرید، مگر نمیبینید که من پیمانه را تمام میدهم و من بهترین میزبانانم؟» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٠ | فَإِن لَم تَأتونى بِهِ فَلا كَيلَ لَكُم عِندى وَ لا تَقرَبونِ (٦٠) ]] }} | |||
«پس اگر او را نزد من نیاوردید، برای شما نزد من هرگز پیمانهای نیست، و به من نزدیک (هم) نشوید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦١ | قالوا سَنُرٰوِدُ عَنهُ أَباهُ وَ إِنّا لَفٰعِلونَ (٦١) ]] }} | |||
گفتند: «او را با نیرنگ و رفت و آمدی مکرر از پدرش خواهیم ربود، و بهراستی ما همی کننده(ی این کار) میباشیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٢ | وَ قالَ لِفِتيٰنِهِ اجعَلوا بِضٰعَتَهُم فى رِحالِهِم لَعَلَّهُم يَعرِفونَها إِذَا انقَلَبوا إِلىٰ أَهلِهِم لَعَلَّهُم يَرجِعونَ (٦٢) ]] }} | |||
و (یوسف) به جوانان خود گفت: «سرمایههای آنان را در بارهایشان بگذارید، شاید هنگامی که سوی خانوادهی خود برگشتند آن را بازیابند، شاید بازگردند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٣ | فَلَمّا رَجَعوا إِلىٰ أَبيهِم قالوا يٰأَبانا مُنِعَ مِنَّا الكَيلُ فَأَرسِل مَعَنا أَخانا نَكتَل وَ إِنّا لَهُ لَحٰفِظونَ (٦٣) ]] }} | |||
پس هنگامی که سوی پدرشان بازگشتند، گفتند: «ای پدرمان! پیمانه (ی گندم) از ما منع شد، پس برادرمان را با ما بفرست تا پیمانه برگیریم، و ما بیگمان برای او نگهبانان ویژهایم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٤ | قالَ هَل إمَنُكُم عَلَيهِ إِلّا كَما أَمِنتُكُم عَلىٰ أَخيهِ مِن قَبلُ فَاللَّهُ خَيرٌ حٰفِظًا وَ هُوَ أَرحَمُ الرّٰحِمينَ (٦٤) ]] }} | |||
(یعقوب) گفت: «آیا جز همانگونه که شما را پیش از این بر برادرش امینتان داشتم، بر او (نیز اکنون هم) امینتان بدارم؟! پس خدا بهترین نگهبان است، و اوست رحمکنندهترین رحمکنندگان.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٥ | وَ لَمّا فَتَحوا مَتٰعَهُم وَجَدوا بِضٰعَتَهُم رُدَّت إِلَيهِم قالوا يٰأَبانا ما نَبغى هٰذِهِ بِضٰعَتُنا رُدَّت إِلَينا وَ نَميرُ أَهلَنا وَ نَحفَظُ أَخانا وَ نَزدادُ كَيلَ بَعيرٍ ذٰلِكَ كَيلٌ يَسيرٌ (٦٥) ]] }} | |||
و هنگامی که بار خود را گشودند، دریافتند که سرمایهشان بدانها بازگردانیده شده.گفتند: «ای پدرمان! ما (دیگر) چه میجوییم؟ این سرمایهی ماست که به ما بازگردانیده شده و قوت خانوادهی خود را (هم) میافزاییم و برادرمان را (هم) حفظ میکنیم و پیمانهی شتری (هم) میافزاییم؛ این (پیمانهی گذشتهی عزیز) پیمانهای ناچیز است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٦ | قالَ لَن أُرسِلَهُ مَعَكُم حَتّىٰ تُؤتونِ مَوثِقًا مِنَ اللَّهِ لَتَأتُنَّنى بِهِ إِلّا أَن يُحاطَ بِكُم فَلَمّا إتَوهُ مَوثِقَهُم قالَ اللَّهُ عَلىٰ ما نَقولُ وَكيلٌ (٦٦) ]] }} | |||
گفت: «هرگز او را با شما نخواهم فرستاد تا پیمانی از خدایم بیاورید که بهراستی او را بیچون نزد من باز آورید، مگر آنکه ناخودآگاه گرفتار شوید.» پس چون پیمان خود را برای او آوردند (یعقوب) گفت: «خدا بر آنچه میگوییم وکیل است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٧ | وَ قالَ يٰبَنِىَّ لا تَدخُلوا مِن بابٍ وٰحِدٍ وَ ادخُلوا مِن أَبوٰبٍ مُتَفَرِّقَةٍ وَ ما أُغنى عَنكُم مِنَ اللَّهِ مِن شَيءٍ إِنِ الحُكمُ إِلّا لِلَّهِ عَلَيهِ تَوَكَّلتُ وَ عَلَيهِ فَليَتَوَكَّلِ المُتَوَكِّلونَ (٦٧) ]] }} | |||
و گفت: «ای پسران من! (همه) از یک در و راه در نیایید و از راهها و درهای جداگانه درآیید و من (با این سفارش) چیزی از (قضای) خدا را از شما دور نمیتوانم داشت. فرمان جز برای خدا نیست. تنها بر او توکل کردم، پس توکلکنندگان باید تنها بر او توکل کنند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٨ | وَ لَمّا دَخَلوا مِن حَيثُ أَمَرَهُم أَبوهُم ما كانَ يُغنى عَنهُم مِنَ اللَّهِ مِن شَيءٍ إِلّا حاجَةً فى نَفسِ يَعقوبَ قَضىٰها وَ إِنَّهُ لَذو عِلمٍ لِما عَلَّمنٰهُ وَ لٰكِنَّ أَكثَرَ النّاسِ لا يَعلَمونَ (٦٨) ]] }} | |||
و چون - همانگونه که پدرشان به آنان امر کرده بود - وارد شدند (این کار) چیزی را در برابر خدا از آنان بینیاز نکرده بود؛ جز اینکه یعقوب نیازی را که در دلش بود، بر آورد. و بیگمان، او به آنچه بدو آموخته بودیم بهراستی دارای دانشی (فراوان) بود؛ ولی بیشتر مردمان نمیدانند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٦٩ | وَ لَمّا دَخَلوا عَلىٰ يوسُفَ إوىٰ إِلَيهِ أَخاهُ قالَ إِنّى أَنا۠ أَخوكَ فَلا تَبتَئِس بِما كانوا يَعمَلونَ (٦٩) ]] }} | |||
و هنگامی که بر یوسف وارد شدند، برادرش [:بنیامین] را سوی خود جای داد و گفت: «بهراستی من، همین من، برادر تو هستم. پس، از آنچه (برادران) میکردهاند ،غمگین مباش.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٠ | فَلَمّا جَهَّزَهُم بِجَهازِهِم جَعَلَ السِّقايَةَ فى رَحلِ أَخيهِ ثُمَّ أَذَّنَ مُؤَذِّنٌ أَيَّتُهَا العيرُ إِنَّكُم لَسٰرِقونَ (٧٠) ]] }} | |||
پس هنگامی که آنان را به خواروبارشان مجهز کرد، پیمانه(ی زرینِ شاه) را در بارِ برادرش نهاد. سپس (به دستور او) ندا کنندهای ندا در داد: «بیگمان شما همانا دزدانید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧١ | قالوا وَ أَقبَلوا عَلَيهِم ماذا تَفقِدونَ (٧١) ]] }} | |||
(برادران) در حالی که به آنان روی کردند، گفتند: «در پی چهاید؟» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٢ | قالوا نَفقِدُ صُواعَ المَلِكِ وَ لِمَن جاءَ بِهِ حِملُ بَعيرٍ وَ أَنا۠ بِهِ زَعيمٌ (٧٢) ]] }} | |||
گفتند: «در پی پیمانهی شاهیم، و برای هر که آن را بیاورد یک بار شتر است.» و (ندا کنندهای گفت:) «و من سخت ضامن آنم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٣ | قالوا تَاللَّهِ لَقَد عَلِمتُم ما جِئنا لِنُفسِدَ فِى الأَرضِ وَ ما كُنّا سٰرِقينَ (٧٣) ]] }} | |||
گفتند: «به خدا سوگند، شما بهراستی و درستی دانستید که ما نیامدهایم تا در این سرزمین افساد کنیم و ما هیچگاه دزد نبودهایم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٤ | قالوا فَما جَزٰؤُهُ إِن كُنتُم كٰذِبينَ (٧٤) ]] }} | |||
گفتند: «پس، اگر دروغگو بودهاید کیفرش چیست؟» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٥ | قالوا جَزٰؤُهُ مَن وُجِدَ فى رَحلِهِ فَهُوَ جَزٰؤُهُ كَذٰلِكَ نَجزِى الظّٰلِمينَ (٧٥) ]] }} | |||
گفتند: «کیفرش کسی است که پیمانه در بارش پیدا شود، پس کیفرش خود اوست. ما ستمکاران را اینگونه کیفر میدهیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٦ | فَبَدَأَ بِأَوعِيَتِهِم قَبلَ وِعاءِ أَخيهِ ثُمَّ استَخرَجَها مِن وِعاءِ أَخيهِ كَذٰلِكَ كِدنا لِيوسُفَ ما كانَ لِيَأخُذَ أَخاهُ فى دينِ المَلِكِ إِلّا أَن يَشاءَ اللَّهُ نَرفَعُ دَرَجٰتٍ مَن نَشاءُ وَ فَوقَ كُلِّ ذى عِلمٍ عَليمٌ (٧٦) ]] }} | |||
پس (یوسف) به (بازرسی) بارهای آنان - پیش از بار برادرش - آغاز کرد. سپس (در پایان کار) آن را از بار برادرش [:بنیامین] به پویایی (ظاهری) در آورد. اینگونه به یوسف شیوه(ای شرعی) آموختیم (چرا که) او در آیین پادشاه نمیتوانست برادرش را بگیرد؛ مگر اینکه خدا بخواهد (و چنین راهی بدو بنماید). کسانی را که بخواهیم به درجاتی بالا میبریم و برتر از هر صاحب دانشی، دانشوری است. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٧ | قالوا إِن يَسرِق فَقَد سَرَقَ أَخٌ لَهُ مِن قَبلُ فَأَسَرَّها يوسُفُ فى نَفسِهِ وَ لَم يُبدِها لَهُم قالَ أَنتُم شَرٌّ مَكانًا وَ اللَّهُ أَعلَمُ بِما تَصِفونَ (٧٧) ]] }} | |||
گفتند: «اگر او دزدی میکند، همانا پیش از این برادرش (یوسف هم) دزدی کرده است.» پس یوسف این (سخن) را در دل خود پنهان داشت و آن را برایشان آشکار نکرد (ولی) گفت: «موقعیت شما بدتر (از او) است، و خدا به آنچه وصف میکنید داناتر است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٨ | قالوا يٰأَيُّهَا العَزيزُ إِنَّ لَهُ أَبًا شَيخًا كَبيرًا فَخُذ أَحَدَنا مَكانَهُ إِنّا نَرىٰكَ مِنَ المُحسِنينَ (٧٨) ]] }} | |||
گفتند: «هان ای عزیز! او را بهراستی پدری پیر (و) سالخورده است؛ پس یکی از ما را به جای او برگیر. بیگمان ما تو را از نیکوکاران میبینیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٧٩ | قالَ مَعاذَ اللَّهِ أَن نَأخُذَ إِلّا مَن وَجَدنا مَتٰعَنا عِندَهُ إِنّا إِذًا لَظٰلِمونَ (٧٩) ]] }} | |||
گفت: «پناه بر خدا که جز آن کس را که کالای خود را نزد وی یافتهایم برگیریم، زیرا در آن صورت بیامان ما ستمکارانیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٠ | فَلَمَّا استَيـَٔسوا مِنهُ خَلَصوا نَجِيًّا قالَ كَبيرُهُم أَلَم تَعلَموا أَنَّ أَباكُم قَد أَخَذَ عَلَيكُم مَوثِقًا مِنَ اللَّهِ وَ مِن قَبلُ ما فَرَّطتُم فى يوسُفَ فَلَن أَبرَحَ الأَرضَ حَتّىٰ يَأذَنَ لى أَبى أَو يَحكُمَ اللَّهُ لى وَ هُوَ خَيرُ الحٰكِمينَ (٨٠) ]] }} | |||
پس هنگامی که از او نومید شدند، رازگویان (همچون فراریان خستند و) رستند. بزرگشان گفت: «مگر نمیدانید که پدرتان بر شما پیمانی استوار از خدا بر گرفت؟ و از پیش (هم) دربارهی یوسف آنچه تفریط و کوتاهی کردید (یاد کنید). پس هرگز از این سرزمین بر نخواهم خاست تا پدرم برایم اجازه دهد یا خدا در حق من داوری کند و او بهترین داوران است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨١ | ارجِعوا إِلىٰ أَبيكُم فَقولوا يٰأَبانا إِنَّ ابنَكَ سَرَقَ وَ ما شَهِدنا إِلّا بِما عَلِمنا وَ ما كُنّا لِلغَيبِ حٰفِظينَ (٨١) ]] }} | |||
«سوی پدرتان بازگردید. پس (به او) بگویید: پدرمان! پسرت دزدی کرده و ما جز به آنچه میدانستیم گواهی نمیدهیم. و ما نگهبان غیب (هم) نبودهایم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٢ | وَ سـَٔلِ القَريَةَ الَّتى كُنّا فيها وَ العيرَ الَّتى أَقبَلنا فيها وَ إِنّا لَصٰدِقونَ (٨٢) ]] }} | |||
«و از (مردم) مجتمعی که در آن بودیم و (از) کاروانی که از میانشان آمدیم جویا شو و ما بهراستی راستگویانیم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٣ | قالَ بَل سَوَّلَت لَكُم أَنفُسُكُم أَمرًا فَصَبرٌ جَميلٌ عَسَى اللَّهُ أَن يَأتِيَنى بِهِم جَميعًا إِنَّهُ هُوَ العَليمُ الحَكيمُ (٨٣) ]] }} | |||
(یعقوب) گفت: « (چنین نیست!) بلکه نفسهای (امارهی) شما کاری (نادرست) را برایتان آراسته است. پس صبری زیبا و دلربا (باید). امید که خدا همهی آنان را سوی من (باز) آورد، که او، (هم)او بس دانای حکیم است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٤ | وَ تَوَلّىٰ عَنهُم وَ قالَ يٰأَسَفىٰ عَلىٰ يوسُفَ وَ ابيَضَّت عَيناهُ مِنَ الحُزنِ فَهُوَ كَظيمٌ (٨٤) ]] }} | |||
و از آنان روی گردانید و گفت: «اسفا بر یوسف!» و دو چشمانش از اندوه سپید شد. پس او بس فرو نشانندهی خشم است. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٥ | قالوا تَاللَّهِ تَفتَؤُا۟ تَذكُرُ يوسُفَ حَتّىٰ تَكونَ حَرَضًا أَو تَكونَ مِنَ الهٰلِكينَ (٨٥) ]] }} | |||
(پسران) گفتند: «به خدا سوگند که پیوسته یوسف را یاد میکنی تا به پرتگاه هلاکت افتی یا (در پایان) از هلاکشدگان باشی.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٦ | قالَ إِنَّما أَشكوا بَثّى وَ حُزنى إِلَى اللَّهِ وَ أَعلَمُ مِنَ اللَّهِ ما لا تَعلَمونَ (٨٦) ]] }} | |||
گفت: «من شکایت غم و اندوه خود را تنها سوی خدا میبرم، و از خدا چیزی میدانم که شما نمیدانید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٧ | يٰبَنِىَّ اذهَبوا فَتَحَسَّسوا مِن يوسُفَ وَ أَخيهِ وَ لا تَا۟يـَٔسوا مِن رَوحِ اللَّهِ إِنَّهُ لا يَا۟يـَٔسُ مِن رَوحِ اللَّهِ إِلَّا القَومُ الكٰفِرونَ (٨٧) ]] }} | |||
«ای پسران من! بروید و از یوسف و برادرش با احساسی اکید کاوش و پویش کنید. و از آسایش روحافزا و نسیم فریادرسی و شادی و مهربانی و بخشایش ربانی نومید نشوید. بیگمان جز گروه کافران (کسانی) از رحمت خدا نومید نشوند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٨ | فَلَمّا دَخَلوا عَلَيهِ قالوا يٰأَيُّهَا العَزيزُ مَسَّنا وَ أَهلَنَا الضُّرُّ وَ جِئنا بِبِضٰعَةٍ مُزجىٰةٍ فَأَوفِ لَنَا الكَيلَ وَ تَصَدَّق عَلَينا إِنَّ اللَّهَ يَجزِى المُتَصَدِّقينَ (٨٨) ]] }} | |||
پس هنگامی که (برادران) بر یوسف وارد شدند، گفتند: «ای عزیز! به ما و خانوادهی ما زیان (مرگبار) رسیده و (اکنون) با سرمایهای کم (نزد تو) آمدهایم. پس برای ما پیمانه را وافی و کامل گردان و بر ما تصدّق فرمای. بهراستی خدا صدقهدهندگان را پاداش میدهد.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٨٩ | قالَ هَل عَلِمتُم ما فَعَلتُم بِيوسُفَ وَ أَخيهِ إِذ أَنتُم جٰهِلونَ (٨٩) ]] }} | |||
گفت: «آیا دانستید با یوسف و برادرش به هنگام (و هنگامهی) نادانی، چه(ها) کردید؟» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٠ | قالوا أَءِنَّكَ لَأَنتَ يوسُفُ قالَ أَنا۠ يوسُفُ وَ هٰذا أَخى قَد مَنَّ اللَّهُ عَلَينا إِنَّهُ مَن يَتَّقِ وَ يَصبِر فَإِنَّ اللَّهَ لا يُضيعُ أَجرَ المُحسِنينَ (٩٠) ]] }} | |||
گفتند: «آیا تو بیگمان خودت، بهراستی یوسفی؟»گفت: « (آری) من، (همین) من یوسفم، و این برادر من است. بهراستی خدا بر ما منّت نهاده است. هر که همواره تقوا و صبر پیشه کند بیگمان خدا پاداش نیکوکاران را تباه نمیکند.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩١ | قالوا تَاللَّهِ لَقَد إثَرَكَ اللَّهُ عَلَينا وَ إِن كُنّا لَخٰطِـٔينَ (٩١) ]] }} | |||
گفتند: «به خدا سوگند، (که) بیچون خدا تو را بهراستی بر ما برتری داده است و گر چه ما بیشک خطاکار بودهایم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٢ | قالَ لا تَثريبَ عَلَيكُمُ اليَومَ يَغفِرُ اللَّهُ لَكُم وَ هُوَ أَرحَمُ الرّٰحِمينَ (٩٢) ]] }} | |||
(یوسف) گفت: «امروز بر شما سرزنش و رسوایی نیست. خدا برای شما گناهتان را میپوشد و او رحم کنندهترین رحمکنندگان است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٣ | اذهَبوا بِقَميصى هٰذا فَأَلقوهُ عَلىٰ وَجهِ أَبى يَأتِ بَصيرًا وَ أتونى بِأَهلِكُم أَجمَعينَ (٩٣) ]] }} | |||
«این پیراهن مرا ببرید. پس آن را بر چهرهی پدرم بیفکنید تا بینا بیاید و همهی کسان خود را نزد من آورید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٤ | وَ لَمّا فَصَلَتِ العيرُ قالَ أَبوهُم إِنّى لَأَجِدُ ريحَ يوسُفَ لَولا أَن تُفَنِّدونِ (٩٤) ]] }} | |||
و هنگامی که کاروان جدا شد، پدرشان گفت: «اگر مرا به کم فهمی نسبت ندهید من بهراستی بوی یوسف را مییابم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٥ | قالوا تَاللَّهِ إِنَّكَ لَفى ضَلٰلِكَ القَديمِ (٩٥) ]] }} | |||
گفتند: «به خدا سوگند تو بیگمان (همچنان) فرو رفتهی در ژرفای گمراهی دیرینت هستی.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٦ | فَلَمّا أَن جاءَ البَشيرُ أَلقىٰهُ عَلىٰ وَجهِهِ فَارتَدَّ بَصيرًا قالَ أَلَم أَقُل لَكُم إِنّى أَعلَمُ مِنَ اللَّهِ ما لا تَعلَمونَ (٩٦) ]] }} | |||
پس هنگامی که مژدهرسان آمد، آن (پیراهن) را بر چهرهاش انداخت (و یعقوب) به بیناییش برگشت. گفت: «آیا به شما نگفتم (که) بیشک من از (عنایت) خدا چیزهایی میدانم که شما نمیدانید؟» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٧ | قالوا يٰأَبانَا استَغفِر لَنا ذُنوبَنا إِنّا كُنّا خٰطِـٔينَ (٩٧) ]] }} | |||
گفتند: «پدرمان! برای گناهانمان (از خدا) پوشش (و پوزش) بخواه (که) ما بیگمان خطاکاران بودهایم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٨ | قالَ سَوفَ أَستَغفِرُ لَكُم رَبّى إِنَّهُ هُوَ الغَفورُ الرَّحيمُ (٩٨) ]] }} | |||
گفت: «در آیندهای دور از پروردگارم برای شما پوشش میخواهم. او، همانا (هم)او بسی پوشندهی رحمتگر بر ویژگان است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ٩٩ | فَلَمّا دَخَلوا عَلىٰ يوسُفَ إوىٰ إِلَيهِ أَبَوَيهِ وَ قالَ ادخُلوا مِصرَ إِن شاءَ اللَّهُ إمِنينَ (٩٩) ]] }} | |||
پس هنگامی که (برادران) بر یوسف وارد شدند، پدر و مادر خود را در کنار خویش جای داد و گفت: «انشاءالله، با امن و امان داخل مصر شوید.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٠ | وَ رَفَعَ أَبَوَيهِ عَلَى العَرشِ وَ خَرّوا لَهُ سُجَّدًا وَ قالَ يٰأَبَتِ هٰذا تَأويلُ رُءيٰىَ مِن قَبلُ قَد جَعَلَها رَبّى حَقًّا وَ قَد أَحسَنَ بى إِذ أَخرَجَنى مِنَ السِّجنِ وَ جاءَ بِكُم مِنَ البَدوِ مِن بَعدِ أَن نَزَغَ الشَّيطٰنُ بَينى وَ بَينَ إِخوَتى إِنَّ رَبّى لَطيفٌ لِما يَشاءُ إِنَّهُ هُوَ العَليمُ الحَكيمُ (١٠٠) ]] }} | |||
و پدر و مادرش را بر تخت به بالا (و بلندا) برد، و برای او (به شکرانهی این نعمت برای خدا) به سجده در افتادند و گفت: «پدرم! (هم) این است تعبیر خواب پیشینم بهراستی پروردگارم آن را راست و پایبرجا گردانید، و بیگمان به من احسان کرد، چون مرا از زندان خارج ساخت و شما را از بیابان (کنعان به مصر) باز آورد، پس از آنکه شیطان میان من و برادرانم دخالتی افسادگر نمود. بیچون، پروردگارم نسبت به آنچه بخواهد دقیق و ریزهکار است. بهراستی او بس دانای حکیم است.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠١ | رَبِّ قَد إتَيتَنى مِنَ المُلكِ وَ عَلَّمتَنى مِن تَأويلِ الأَحاديثِ فاطِرَ السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ أَنتَ وَلِيّۦ فِى الدُّنيا وَ الإخِرَةِ تَوَفَّنى مُسلِمًا وَ أَلحِقنى بِالصّٰلِحينَ (١٠١) ]] }} | |||
«پروردگارم! تو بهراستی بخشی از پادشاهی را به من دادی. و برخی از تعبیر حوادث و خوابها را به من آموختی. ای پدیدآورندهی آسمانها و زمین بر فطرت توحید! تنها تو در دنیا و آخرت مولای منی. مرا به حالت تسلیم بمیران، و مرا به شایستگان ملحق فرمای.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٢ | ذٰلِكَ مِن أَنباءِ الغَيبِ نوحيهِ إِلَيكَ وَ ما كُنتَ لَدَيهِم إِذ أَجمَعوا أَمرَهُم وَ هُم يَمكُرونَ (١٠٢) ]] }} | |||
این (ماجرا) از خبرهای مهم غیب است. آن را به تو وحی میکنیم و تو - چون آنان در کارشان همداستان شدند در حالی که مکر میکردند -نزدشان نبودی. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٣ | وَ ما أَكثَرُ النّاسِ وَ لَو حَرَصتَ بِمُؤمِنينَ (١٠٣) ]] }} | |||
و بیشتر مردمان - هر چند (برای ایمان آوردنشان) حرص ورزی - (از) ایمانآورندگان نیستند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٤ | وَ ما تَسـَٔلُهُم عَلَيهِ مِن أَجرٍ إِن هُوَ إِلّا ذِكرٌ لِلعٰلَمينَ (١٠٤) ]] }} | |||
و تو بر این (کار) پاداشی از آنان نخواهی. این (قرآن و پیامبران) جز یادوارهای برای جهانیان نیست. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٥ | وَ كَأَيِّن مِن إيَةٍ فِى السَّمٰوٰتِ وَ الأَرضِ يَمُرّونَ عَلَيها وَ هُم عَنها مُعرِضونَ (١٠٥) ]] }} | |||
و چه بسیار از نشانههایی در آسمانها و زمین است که بر آنها میگذرند، در حالی که از آنها رویگردانند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٦ | وَ ما يُؤمِنُ أَكثَرُهُم بِاللَّهِ إِلّا وَ هُم مُشرِكونَ (١٠٦) ]] }} | |||
و بیشترشان به خدا ایمان نمیآورند مگر آنکه همچنان مشرکانند. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٧ | أَفَأَمِنوا أَن تَأتِيَهُم غٰشِيَةٌ مِن عَذابِ اللَّهِ أَو تَأتِيَهُمُ السّاعَةُ بَغتَةً وَ هُم لا يَشعُرونَ (١٠٧) ]] }} | |||
پس آیا از اینکه عذابی فراگیر از خدا آنان را در رسد در امانند؟ یا (از) ساعت [:قیامت] - درحالی که بیخبرند - ناگهان آنان را فرا رسد (ایمنند)؟ | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٨ | قُل هٰذِهِ سَبيلى أَدعوا إِلَى اللَّهِ عَلىٰ بَصيرَةٍ أَنا۠ وَ مَنِ اتَّبَعَنى وَ سُبحٰنَ اللَّهِ وَ ما أَنا۠ مِنَ المُشرِكينَ (١٠٨) ]] }} | |||
بگو: «این راه (راهوار) من است و هر کس را (که) پیرویام کرد از روی بصیرتی (شایسته) به راه خدا دعوت میکنم. و منزّه است خدا. و من از مشرکان نیستم.» | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١٠٩ | وَ ما أَرسَلنا مِن قَبلِكَ إِلّا رِجالًا نوحى إِلَيهِم مِن أَهلِ القُرىٰ أَفَلَم يَسيروا فِى الأَرضِ فَيَنظُروا كَيفَ كانَ عٰقِبَةُ الَّذينَ مِن قَبلِهِم وَ لَدارُ الإخِرَةِ خَيرٌ لِلَّذينَ اتَّقَوا أَفَلا تَعقِلونَ (١٠٩) ]] }} | |||
و پیش از تو (نیز) بجز مردانی از اهل مجتمعها - که به آنان وحی میکردیم - (برای مکلفان) نفرستادیم. آیا پس (از این وحی) در زمین نگردیدند تا فرجام کسانی را که پیش از آنان بودهاند بنگرند؟ و به درستی سرای آخرت -برای کسانی که پرهیزگاری کردهاند- بهتر است. پس آیا خردورزی نمیکنید؟ | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١١٠ | حَتّىٰ إِذَا استَيـَٔسَ الرُّسُلُ وَ ظَنّوا أَنَّهُم قَد كُذِبوا جاءَهُم نَصرُنا فَنُجِّىَ مَن نَشاءُ وَ لا يُرَدُّ بَأسُنا عَنِ القَومِ المُجرِمينَ (١١٠) ]] }} | |||
تا هنگامی که فرستادگان (ما از ایمان کافران) نومید شدند و پنداشتند که به آنان (از جانب مردمان) بیگمان دروغ گفته شده، یاریمان آنان را در رسید. پس کسانی را که میخواستیم، نجات یافتند. و برخورد شدیدمان از گروه مجرمان برگشت ندارد. | |||
{{قاب | متن = [[ يوسف ١١١ | لَقَد كانَ فى قَصَصِهِم عِبرَةٌ لِأُولِى الأَلبٰبِ ما كانَ حَديثًا يُفتَرىٰ وَ لٰكِن تَصديقَ الَّذى بَينَ يَدَيهِ وَ تَفصيلَ كُلِّ شَيءٍ وَ هُدًى وَ رَحمَةً لِقَومٍ يُؤمِنونَ (١١١) ]] }} | |||
بیگمان در سرگذشت آنان، برای خردمندان همواره عبرتی بوده است. این سخنی نبوده که به دروغ ساخته شده باشد، بلکه تصدیقکنندهی آنچه از کتابهایی بوده که در برابرش بوده (و پیش از آن گذشته) و جداسازی همه چیز است و گروهی را که ایمان میآورند رهنمودی و رحمتی (بزرگ) است. | |||
==محتوای سوره== | ==محتوای سوره== |
نسخهٔ کنونی تا ۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۲:۳۷
سوره هود | سوره يوسف | سوره الرعد | |||||||||||||||||||||||
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متن سوره
الر. اینها آیات (آن) کتاب روشنگر است.
ما بیگمان آن را قرآنی روشنبیان نازل کردیم، شاید شما (آن را) دریابید.
ما نیکوترین برشهای پیگیر تاریخی را به موجب این قرآن -که به تو وحی کردیم- بر تو حکایت میکنیم؛ و گرچه پیش از آن همانا از غافلان بودهای.
هنگامی که یوسف به پدرش گفت: «پدرم! (در خواب) یازده ستاره را با خورشید و ماه دیدم. آنان را دیدم (که) برای من (به محضر خدا) در حال سجدهاند.»
(یعقوب) گفت: «ای پسرک من! خوابت را برای برادرانت حکایت مکن تا برای تو نیرنگی اندیشند. شیطان بیامان برای انسان دشمنی آشکارگر است.»
«و این چنین، پروردگارت تو را بر میگزیند و برخی از تعبیر حوادث و خوابها را به تو میآموزد، و نعمتش را بر تو و بر خاندان یعقوب به اتمام میرساند، همانگونه که از پیش بر پدرانت، ابراهیم و اسحاق، به اتمام رسانید. بهراستی، پروردگارت بس دانایی حکیم است.»
بهراستی و درستی در (سرگذشت) یوسف و برادرانش برای پرسندگان نشانههایی بودهاست.
چون (برادران او) گفتند: «همواره یوسف و برادرش نزد پدرمان از ما - که جمعی نیرومندیم -دوستداشتنیترند. بیامان پدرمان غرق در (ژرفای) گمراهی آشکارگری است.»
(گفتند:) «یوسف را بکشید یا او را به سرزمینی بیندازید، تا توجه پدرتان تنها برایتان گردد، و تا پس از او گروهی شایسته باشید.»
گویندهای از میان آنان گفت: «یوسف را مکشید و اگر انجامدهندهی کاری هستید، او را در نهانخانهی (آن) چاه بیفکنید، تا برخی از مسافران او را دریابند.»
گفتند: «ای پدر! تو را چه شده که ما را بر یوسف امین نمیداری، حال آنکه ما بهدرستی به سود او بهراستی نصیحتگرانیم.»
«فردا او را با ما بفرست تا در چمنزارها بگردد و بازی کند، و ما بهراستی نگهبان ویژهی (بایسته و شایستهی) اوییم.»
گفت: «اینکه او را ببرید همواره سخت مرا اندوهگین میکند، و میترسم -در حالی که از او در غفلتید- گرگ او را بخورد.»
گفتند: «اگر بهراستی گرگ او را بخورد - حال آنکه ما گروهی نیرومند و متحدیم - در آن صورت ما بیچون گروهی بس زیانکار (و بیبندوبار) خواهیم بود.»
پس هنگامیکه او را بردند و همداستان شدند تا او را در نهانخانهی (آن) چاه بیفکنند، و سوی او وحی کردیم که بهراستی آنان را همانا از این کارشان - در حالیکه باریکبینی نمیکنند - با خبری مهم آگاه خواهیکرد.
و شامگاهان، گریان نزد پدرشان (باز) آمدند.
گفتند: «ای پدر! بهراستی ما رفتیم مسابقه بدهیم، و یوسف را پیش کالای خود نهادیم، پس گرگ او را خورد، ولی تو ما را -هر چند راستگو (هم) باشیم- باورکننده نیستی.»
و (پرچموار) با پیراهنش که آغشته به خونی دروغین بود آمدند. (یعقوب) گفت: «(نه!) بلکه نفوس امارهی شما کاری (دروغین) را برایتان آراسته است. پس (اینک جای) صبری زیباست. و بر آنچه توصیف میکنید، تنها یاری (از) خداست.»
و کاروانی رهسپار آمد. پس (کارگر) آبآور خود را فرو فرستادند (و) او دلوش را (به آن چاه) انداخت. گفت: «مژده! این یک پسری است!» و او را چون کالایی پنهان داشتند، حال آنکه خدا به آنچه میکردند بسی داناست.
و او را به بهایی ناچیز- چند درهم کم شمار- فروختند، و در آن از زاهدان [:بیاعتنایان و کمجویان] بودند.
و آن کس از مصریان که او را خریده به همسرش گفت: «جایگاه و آرامشگاهش را نیکو بدار، شاید به حال ما سود بخشد یا او را به فرزندی برگیریم.» و بدینگونه ما یوسف را در آن سرزمین مکانت بخشیدیم و برای اینکه به او تأویل حوادث و خوابها را بیاموزیم. و خدا بر کار خویش چیره است ولی بیشتر مردم نمیدانند.
و چون به رشدهایش رسید، او را حاکمیتی و علمی (بسیار) دادیم. و نیکوکاران را این چنین پاداش میدهیم.
و آن (بانو) که یوسف در خانهاش بود با او (برای کامگیری از او) رفت و آمدهایی (شهوتزا و محبتافزا) کرد و همهی درها(ی عذر و بهانه) را به رویش بست و گفت: «وای بر تو (که به من تن نمیدهی)!» (یوسف) گفت: «پناه بر خدا! او پروردگار من است که به من جایگاهی نیکو داده است. بیگمان ستمکاران رستگار نمیکنند.»
(این زن) با اصرار و تکرار، همواره آهنگ وی کرد و (یوسف نیز) - اگر برهان پروردگارش را ندیده بود - آهنگ او میکرد. چنین (کردیم) تا بدی و زشتکاری تجاوزگر را از او بازگردانیم. بهراستی او از بندگان پاکشدهی (ویژهی) ماست.
و آن دو، سوی در بر یکدیگر سبقت گرفتند و آن زن پیراهن او را از پشت بدرید. و در آستانهی در ناگهان سرور زن را یافتند. زن گفت: «کیفر کسی که قصد بدی به خانوادهی تو کرده چیست؟جز اینکه زندانی شود یا (مبتلا به) عذابی دردناک (گردد).»
(یوسف) گفت: «او با من (برای کامگیری) مراودهای (شهوتانگیز) داشت.» و شاهدی از خانوادهی آن زن شهادت داد: «اگر پیراهن او از جلو چاک خورده، زن راست گفته، و او از دروغگویان است.»
«و اگر پیراهن او از پشت دریده شده، پس زن دروغ گفته و او از راستان است.»
پس چون (شوهرش) دید پیراهنش از پشت چاک خورده گفت: «بیگمان، این همواره از نیرنگ شما (زنان) است، بیچون نیرنگ شما (زنان) بزرگ است.»
«یوسف! از این (جریان) روی گردان، و تو (ای زن) برای این گناه بدپایانت پوششی بخواه که بیگمان تو از خطاکاران بودهای.»
و زنانی در شهر گفتند: «زنِ عزیز با (غلام) جوان خود مراودههایی شهوتزا میکند [:از او کام میخواهد] و سخت دلباختهی او شده. بهراستی ما او را همواره در گمراهی آشکارگری میبینیم.»
پس چون (همسر عزیز) مکر زنان را شنید، نزد آنان (کسی را) فرستاد و محفلی با تکیهگاهی (فرحبخش) برایشان آماده ساخت و به هریک از آنان کاردی داد و (به یوسف) گفت: « بر (دیدار) آنان (از نهانگاهت) برون آی.» پس چون (زنان) او را دیدند، وی را بس شگرف یافتند و (از شدت هیجان) دستهای خود را (به جای میوهها) همی بریدند و گفتند: «منزّه است خدا! این بشر نیست! این جز فرشتهای بزرگوار نیست!»
(زلیخا) گفت: «این همان (فرشتهی بزرگوار) است که دربارهی او سرزنشم میکردید. بیچون، من همواره با او رفت و آمدهایی شهوتزا (برای کامگیری از او) داشتم، ولی او بسی جویا و پویای نگهبانی خود بود. و اگر آنچه را که به آن دستورش میدهم عمل نکند بهراستی زندانی شود و بیچون و بیامان از خوارشدگان گردد.»
(یوسف) گفت: «پروردگارم! زندان (تن) برای من از آنچه مرا به آن میخوانند دوستداشتنیتر است، و اگر نیرنگ آنان را از من بازنگردانی، کودکانه سوی آنان خواهم گرایید و از (جملهی) نادانان خواهم بود.»
پس، پروردگارش خواستهاش را برایش اجابت کرد و نیرنگ زنان را از او بازگردانید. بیگمان او، (هم)او بسیار شنوای بس داناست.
سپس پس از دیدن آن نشانهها، به نظرشان آمد که او را بیچون تا چندی بیامان به زندان افکنند.
و دو جوان با او به زندان در آمدند. یکی از آن دو گفت: «من خویشتن را (به خواب) دیدم که (انگور برای) شرابی میفشارم.» و دیگری گفت: «من خود را (به خواب) دیدم که بر روی سرم نانی میبرم و پرندگان از آن میخورند. ما را از تعبیرش خبری مهم ده، که ما تو را بهراستی از نیکوکاران میبینیم.»
گفت: «غذایی را که روزی شما میگردد برای شما نمیآید مگر آنکه من از واقعیت و پیامدش به شما خبری مهم میدهم. پیش از آنکه آن غذا برایتان بیاید، این برای شما دو تن از همان چیزهایی است که پروردگارم به من آموخته. من آیین قومی را که به خدا اعتقاد ندارند - و همانانند که به روز بازپسین کافرانند - رها کردم»
«و آیین پدرانم -ابراهیم و اسحاق و یعقوب- را پیروی نمودم. برای ما هرگز سزاوار نبوده که هیچ چیزی را شریک خدا کنیم. این (فضیلت) از فضل خداست بر ما و بر مردم؛ ولی بیشتر مردم سپاسگزاری نمیکنند.»
«ای دو همراه زندانیم! آیا خدایان پراکنده بهترند یا خدای یگانهی بسی برومند و چیره؟»
«شما بجز او، جز نامهایی (بینشان) را نمیپرستید که شما و پدرانتان آنها را نامگذاری کردهاید (و) خدا دلیلی سلطهگر بر (حقانیت) آنها نازل نکرده است. فرمان جز برای خدا نیست (که) فرمان داده جز او را نپرستید. این است دین درست پایبرجا و راستا و پر بها؛ ولی بیشتر مردم نمیدانند.»
«ای دو همراه زندانیم! اما یکی از شما به سرور خود باده مینوشاند، (و) اما دیگری به دار آویخته میشود، سپس پرندگان از سرش میخورند. امری که شما دو تن از من جویا میشوید تحقق یافته است.»
و (یوسف) به آن کس از آن دو که گمان میکرد نجاتیافتنی است، گفت: «مرا نزد آقای خود به یاد آور.» و (اما) شیطان، یادآوری به آقایش را از یادش برد (و) در نتیجه (یوسف) چند سالی در زندان بماند.
و پادشاه (مصر) گفت: «من (در خواب) میبینم هفت گاو فربه را که هفت (گاو) لاغر آنها را میخوردند، و هفت خوشهی سبز و (نیز) هفت خوشهی دیگر خشکیده را. ای سران قوم! اگر خواب تعبیر میکردهاید، دربارهی خواب من، به من رأی تازهای بدهید.»
گفتند: « (اینها) پارههایی است پراکنده از خوابهایی پریشان، و ما به تعبیر خوابهای آشفته دانا نیستیم.»
و آن کس از آن دو (به زندانی) که نجات یافته و پس از چندی (سخن یوسف را) به یاد آورده بود گفت: «مرا (به زندان) بفرستید تا شما را از تعبیر این (خواب) خبری مهم بدهم.»
«یوسف! ای مرد بسی راستگوی راستکردار! دربارهی (این خواب که) هفت گاو فربه، هفت گاو لاغر آنها را میخورند، و هفت خوشهی سبز و هفت (خوشهی) دیگر خشکیده، به ما نظری نو بده. شاید فراسوی مردم برگردم (و) شاید آنان (تعبیر آنها را و صداقت تو را) بدانند.»
یوسف گفت: «هفت سال پیدرپی پویا و کوشا با رنجی مداوم میکارید، پس آنچه را درویدید - جز اندکی را که میخورید - در خوشهاش واگذارید.»
«سپس بعد از آن، هفت سال سخت در میرسد (که) آنچه در آن سال(های سبز) از پیش نهادهاید - جز اندکی را که میاندوزید- (آن سالها) همه را خواهند خورد.»
«سپس، سالی در میرسد که مردم در آن (سال) از بیآبی نجات یافته (و) با باران کمک میشوند و در آن (میوه) میفشارند.»
و پادشاه گفت: «او را نزد من آورید.» پس هنگامی که آن فرستاده نزد وی آمد (یوسف) گفت: «نزد آقای خویش برگرد و از او بپرس که حالت مهم آن زنانی که دستهای خود را به شدت بریدند چگونه (بوده) است؟ بیگمان پروردگار من به نیرنگ آنان بسی آگاه است.»
(پادشاه به آن زنان) گفت: « چون از یوسف کام خواستید شما را چه مهمی روی داده بود؟» (زنان) گفتند: «منزّه است خدا! ما هیچ بدی بر یوسف ندانستیم.» همسر عزیز گفت: «اکنون حقیقت به روشنی آشکار شد. من بودم که با او مراودهی شهوتزا کردم (و از او کام خواستم) و بیگمان او بهراستی از راستان است.»
(یوسف گفت:) «این (درخواست اعادهی حیثیّت) برای آن بود تا (عزیز) بداند که من بیگمان در نهان به او خیانت نکردم. و خدا بیامان نیرنگ خائنان را راهنمایی نمیکند.»
«و من نفس خود را تبرئه نمیکنم (که) همواره نفس (اماره) همی امرکننده به بدی است، مگر آنچه را که خدای من رحم کند. بهراستی پروردگار من پوشندهی رحمتگر بر ویژگان است.»
و پادشاه گفت: «او را نزد من آورید، تا وی را برای خود برگزینم.» پس چون با او سخن به میان آورد گفت: «تو امروز بهدرستی نزد ما دارای منزلت و مکانت و امانتی بزرگ هستی.»
(یوسف) گفت: «مرا به خزانهداری (این) سرزمین برگمار. بیگمان من نگهبانی بسی نیرومند و دانا هستم.»
و بدینگونه یوسف را در سرزمین (مصر) مقام و منزلت دادیم، که از آن - هر جا که بخواهد - سکونتی هموار و راهوار میکرد. (اینگونه) هر که را بخواهیم رحمت خود را به او میرسانیم و اجر نیکوکاران را تباه نمیسازیم.
و به راستی اجر آخرت - برای کسانی که ایمان آورده و پرهیزگاری مینمودهاند - بهتر است.
و برادران یوسف آمدند و بر او وارد شدند. پس آنان را شناخت حال آنکه آنان انکار (و انگار)کنندهی اویند.
و چون آنان را به خواروبار (دلخواه زندگیساز)شان مجهّز کرد گفت: «برادر پدری خود را نزد من آرید، مگر نمیبینید که من پیمانه را تمام میدهم و من بهترین میزبانانم؟»
«پس اگر او را نزد من نیاوردید، برای شما نزد من هرگز پیمانهای نیست، و به من نزدیک (هم) نشوید.»
گفتند: «او را با نیرنگ و رفت و آمدی مکرر از پدرش خواهیم ربود، و بهراستی ما همی کننده(ی این کار) میباشیم.»
و (یوسف) به جوانان خود گفت: «سرمایههای آنان را در بارهایشان بگذارید، شاید هنگامی که سوی خانوادهی خود برگشتند آن را بازیابند، شاید بازگردند.»
پس هنگامی که سوی پدرشان بازگشتند، گفتند: «ای پدرمان! پیمانه (ی گندم) از ما منع شد، پس برادرمان را با ما بفرست تا پیمانه برگیریم، و ما بیگمان برای او نگهبانان ویژهایم.»
(یعقوب) گفت: «آیا جز همانگونه که شما را پیش از این بر برادرش امینتان داشتم، بر او (نیز اکنون هم) امینتان بدارم؟! پس خدا بهترین نگهبان است، و اوست رحمکنندهترین رحمکنندگان.»
و هنگامی که بار خود را گشودند، دریافتند که سرمایهشان بدانها بازگردانیده شده.گفتند: «ای پدرمان! ما (دیگر) چه میجوییم؟ این سرمایهی ماست که به ما بازگردانیده شده و قوت خانوادهی خود را (هم) میافزاییم و برادرمان را (هم) حفظ میکنیم و پیمانهی شتری (هم) میافزاییم؛ این (پیمانهی گذشتهی عزیز) پیمانهای ناچیز است.»
گفت: «هرگز او را با شما نخواهم فرستاد تا پیمانی از خدایم بیاورید که بهراستی او را بیچون نزد من باز آورید، مگر آنکه ناخودآگاه گرفتار شوید.» پس چون پیمان خود را برای او آوردند (یعقوب) گفت: «خدا بر آنچه میگوییم وکیل است.»
و گفت: «ای پسران من! (همه) از یک در و راه در نیایید و از راهها و درهای جداگانه درآیید و من (با این سفارش) چیزی از (قضای) خدا را از شما دور نمیتوانم داشت. فرمان جز برای خدا نیست. تنها بر او توکل کردم، پس توکلکنندگان باید تنها بر او توکل کنند.»
و چون - همانگونه که پدرشان به آنان امر کرده بود - وارد شدند (این کار) چیزی را در برابر خدا از آنان بینیاز نکرده بود؛ جز اینکه یعقوب نیازی را که در دلش بود، بر آورد. و بیگمان، او به آنچه بدو آموخته بودیم بهراستی دارای دانشی (فراوان) بود؛ ولی بیشتر مردمان نمیدانند.
و هنگامی که بر یوسف وارد شدند، برادرش [:بنیامین] را سوی خود جای داد و گفت: «بهراستی من، همین من، برادر تو هستم. پس، از آنچه (برادران) میکردهاند ،غمگین مباش.»
پس هنگامی که آنان را به خواروبارشان مجهز کرد، پیمانه(ی زرینِ شاه) را در بارِ برادرش نهاد. سپس (به دستور او) ندا کنندهای ندا در داد: «بیگمان شما همانا دزدانید.»
(برادران) در حالی که به آنان روی کردند، گفتند: «در پی چهاید؟»
گفتند: «در پی پیمانهی شاهیم، و برای هر که آن را بیاورد یک بار شتر است.» و (ندا کنندهای گفت:) «و من سخت ضامن آنم.»
گفتند: «به خدا سوگند، شما بهراستی و درستی دانستید که ما نیامدهایم تا در این سرزمین افساد کنیم و ما هیچگاه دزد نبودهایم.»
گفتند: «پس، اگر دروغگو بودهاید کیفرش چیست؟»
گفتند: «کیفرش کسی است که پیمانه در بارش پیدا شود، پس کیفرش خود اوست. ما ستمکاران را اینگونه کیفر میدهیم.»
پس (یوسف) به (بازرسی) بارهای آنان - پیش از بار برادرش - آغاز کرد. سپس (در پایان کار) آن را از بار برادرش [:بنیامین] به پویایی (ظاهری) در آورد. اینگونه به یوسف شیوه(ای شرعی) آموختیم (چرا که) او در آیین پادشاه نمیتوانست برادرش را بگیرد؛ مگر اینکه خدا بخواهد (و چنین راهی بدو بنماید). کسانی را که بخواهیم به درجاتی بالا میبریم و برتر از هر صاحب دانشی، دانشوری است.
گفتند: «اگر او دزدی میکند، همانا پیش از این برادرش (یوسف هم) دزدی کرده است.» پس یوسف این (سخن) را در دل خود پنهان داشت و آن را برایشان آشکار نکرد (ولی) گفت: «موقعیت شما بدتر (از او) است، و خدا به آنچه وصف میکنید داناتر است.»
گفتند: «هان ای عزیز! او را بهراستی پدری پیر (و) سالخورده است؛ پس یکی از ما را به جای او برگیر. بیگمان ما تو را از نیکوکاران میبینیم.»
گفت: «پناه بر خدا که جز آن کس را که کالای خود را نزد وی یافتهایم برگیریم، زیرا در آن صورت بیامان ما ستمکارانیم.»
پس هنگامی که از او نومید شدند، رازگویان (همچون فراریان خستند و) رستند. بزرگشان گفت: «مگر نمیدانید که پدرتان بر شما پیمانی استوار از خدا بر گرفت؟ و از پیش (هم) دربارهی یوسف آنچه تفریط و کوتاهی کردید (یاد کنید). پس هرگز از این سرزمین بر نخواهم خاست تا پدرم برایم اجازه دهد یا خدا در حق من داوری کند و او بهترین داوران است.»
«سوی پدرتان بازگردید. پس (به او) بگویید: پدرمان! پسرت دزدی کرده و ما جز به آنچه میدانستیم گواهی نمیدهیم. و ما نگهبان غیب (هم) نبودهایم.»
«و از (مردم) مجتمعی که در آن بودیم و (از) کاروانی که از میانشان آمدیم جویا شو و ما بهراستی راستگویانیم.»
(یعقوب) گفت: « (چنین نیست!) بلکه نفسهای (امارهی) شما کاری (نادرست) را برایتان آراسته است. پس صبری زیبا و دلربا (باید). امید که خدا همهی آنان را سوی من (باز) آورد، که او، (هم)او بس دانای حکیم است.»
و از آنان روی گردانید و گفت: «اسفا بر یوسف!» و دو چشمانش از اندوه سپید شد. پس او بس فرو نشانندهی خشم است.
(پسران) گفتند: «به خدا سوگند که پیوسته یوسف را یاد میکنی تا به پرتگاه هلاکت افتی یا (در پایان) از هلاکشدگان باشی.»
گفت: «من شکایت غم و اندوه خود را تنها سوی خدا میبرم، و از خدا چیزی میدانم که شما نمیدانید.»
«ای پسران من! بروید و از یوسف و برادرش با احساسی اکید کاوش و پویش کنید. و از آسایش روحافزا و نسیم فریادرسی و شادی و مهربانی و بخشایش ربانی نومید نشوید. بیگمان جز گروه کافران (کسانی) از رحمت خدا نومید نشوند.»
پس هنگامی که (برادران) بر یوسف وارد شدند، گفتند: «ای عزیز! به ما و خانوادهی ما زیان (مرگبار) رسیده و (اکنون) با سرمایهای کم (نزد تو) آمدهایم. پس برای ما پیمانه را وافی و کامل گردان و بر ما تصدّق فرمای. بهراستی خدا صدقهدهندگان را پاداش میدهد.»
گفت: «آیا دانستید با یوسف و برادرش به هنگام (و هنگامهی) نادانی، چه(ها) کردید؟»
گفتند: «آیا تو بیگمان خودت، بهراستی یوسفی؟»گفت: « (آری) من، (همین) من یوسفم، و این برادر من است. بهراستی خدا بر ما منّت نهاده است. هر که همواره تقوا و صبر پیشه کند بیگمان خدا پاداش نیکوکاران را تباه نمیکند.»
گفتند: «به خدا سوگند، (که) بیچون خدا تو را بهراستی بر ما برتری داده است و گر چه ما بیشک خطاکار بودهایم.»
(یوسف) گفت: «امروز بر شما سرزنش و رسوایی نیست. خدا برای شما گناهتان را میپوشد و او رحم کنندهترین رحمکنندگان است.»
«این پیراهن مرا ببرید. پس آن را بر چهرهی پدرم بیفکنید تا بینا بیاید و همهی کسان خود را نزد من آورید.»
و هنگامی که کاروان جدا شد، پدرشان گفت: «اگر مرا به کم فهمی نسبت ندهید من بهراستی بوی یوسف را مییابم.»
گفتند: «به خدا سوگند تو بیگمان (همچنان) فرو رفتهی در ژرفای گمراهی دیرینت هستی.»
پس هنگامی که مژدهرسان آمد، آن (پیراهن) را بر چهرهاش انداخت (و یعقوب) به بیناییش برگشت. گفت: «آیا به شما نگفتم (که) بیشک من از (عنایت) خدا چیزهایی میدانم که شما نمیدانید؟»
گفتند: «پدرمان! برای گناهانمان (از خدا) پوشش (و پوزش) بخواه (که) ما بیگمان خطاکاران بودهایم.»
گفت: «در آیندهای دور از پروردگارم برای شما پوشش میخواهم. او، همانا (هم)او بسی پوشندهی رحمتگر بر ویژگان است.»
پس هنگامی که (برادران) بر یوسف وارد شدند، پدر و مادر خود را در کنار خویش جای داد و گفت: «انشاءالله، با امن و امان داخل مصر شوید.»
و پدر و مادرش را بر تخت به بالا (و بلندا) برد، و برای او (به شکرانهی این نعمت برای خدا) به سجده در افتادند و گفت: «پدرم! (هم) این است تعبیر خواب پیشینم بهراستی پروردگارم آن را راست و پایبرجا گردانید، و بیگمان به من احسان کرد، چون مرا از زندان خارج ساخت و شما را از بیابان (کنعان به مصر) باز آورد، پس از آنکه شیطان میان من و برادرانم دخالتی افسادگر نمود. بیچون، پروردگارم نسبت به آنچه بخواهد دقیق و ریزهکار است. بهراستی او بس دانای حکیم است.»
«پروردگارم! تو بهراستی بخشی از پادشاهی را به من دادی. و برخی از تعبیر حوادث و خوابها را به من آموختی. ای پدیدآورندهی آسمانها و زمین بر فطرت توحید! تنها تو در دنیا و آخرت مولای منی. مرا به حالت تسلیم بمیران، و مرا به شایستگان ملحق فرمای.»
این (ماجرا) از خبرهای مهم غیب است. آن را به تو وحی میکنیم و تو - چون آنان در کارشان همداستان شدند در حالی که مکر میکردند -نزدشان نبودی.
و بیشتر مردمان - هر چند (برای ایمان آوردنشان) حرص ورزی - (از) ایمانآورندگان نیستند.
و تو بر این (کار) پاداشی از آنان نخواهی. این (قرآن و پیامبران) جز یادوارهای برای جهانیان نیست.
و چه بسیار از نشانههایی در آسمانها و زمین است که بر آنها میگذرند، در حالی که از آنها رویگردانند.
و بیشترشان به خدا ایمان نمیآورند مگر آنکه همچنان مشرکانند.
پس آیا از اینکه عذابی فراگیر از خدا آنان را در رسد در امانند؟ یا (از) ساعت [:قیامت] - درحالی که بیخبرند - ناگهان آنان را فرا رسد (ایمنند)؟
بگو: «این راه (راهوار) من است و هر کس را (که) پیرویام کرد از روی بصیرتی (شایسته) به راه خدا دعوت میکنم. و منزّه است خدا. و من از مشرکان نیستم.»
و پیش از تو (نیز) بجز مردانی از اهل مجتمعها - که به آنان وحی میکردیم - (برای مکلفان) نفرستادیم. آیا پس (از این وحی) در زمین نگردیدند تا فرجام کسانی را که پیش از آنان بودهاند بنگرند؟ و به درستی سرای آخرت -برای کسانی که پرهیزگاری کردهاند- بهتر است. پس آیا خردورزی نمیکنید؟
تا هنگامی که فرستادگان (ما از ایمان کافران) نومید شدند و پنداشتند که به آنان (از جانب مردمان) بیگمان دروغ گفته شده، یاریمان آنان را در رسید. پس کسانی را که میخواستیم، نجات یافتند. و برخورد شدیدمان از گروه مجرمان برگشت ندارد.
بیگمان در سرگذشت آنان، برای خردمندان همواره عبرتی بوده است. این سخنی نبوده که به دروغ ساخته شده باشد، بلکه تصدیقکنندهی آنچه از کتابهایی بوده که در برابرش بوده (و پیش از آن گذشته) و جداسازی همه چیز است و گروهی را که ایمان میآورند رهنمودی و رحمتی (بزرگ) است.