سوره القلم: تفاوت میان نسخه‌ها

از الکتاب
(Edited by QRobot!)
 
(QRobot edit)
 
(یک نسخهٔ میانیِ ایجادشده توسط همین کاربر نشان داده نشد)
خط ۱: خط ۱:
{{قاب | متن = [[ القلم ١ | ن‌ وَ الْقَلَمِ‌ وَ مَا يَسْطُرُونَ‌ (١)]] [[ القلم ٢ | مَا أَنْتَ‌ بِنِعْمَةِ رَبِّکَ‌ بِمَجْنُونٍ‌ (٢)]] [[ القلم ٣ | وَ إِنَ‌ لَکَ‌ لَأَجْراً غَيْرَ مَمْنُونٍ‌ (٣)]] [[ القلم ٤ | وَ إِنَّکَ‌ لَعَلَى‌ خُلُقٍ‌ عَظِيمٍ‌ (٤)]] [[ القلم ٥ | فَسَتُبْصِرُ وَ يُبْصِرُونَ‌ (٥)]] [[ القلم ٦ | بِأَيِّکُمُ‌ الْمَفْتُونُ‌ (٦)]] [[ القلم ٧ | إِنَ‌ رَبَّکَ‌ هُوَ أَعْلَمُ‌ بِمَنْ‌ ضَلَ‌ عَنْ‌... (٧)]] [[ القلم ٨ | ... ]]  }} {{سخ}}
__TOC__
  {{ سوره | نام =سوره القلم | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::2|٢]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::68|٦٨]]  | آیه = [[تعداد آیات::52|٥٢]] | بعدی = سوره الحاقة | قبلی = سوره الملك | کلمه = [[تعداد کلمات::329|٣٢٩]] | حرف =  }}
  {{ سوره | نام =سوره القلم | محل نزول =محل نزول::مكه | ترتيب نزول = [[ترتيب نزول::2|٢]] | جزء = | کتابت = [[شماره کتابت::68|٦٨]]  | آیه = [[تعداد آیات::52|٥٢]] | بعدی = سوره الحاقة | قبلی = سوره الملك | کلمه = [[تعداد کلمات::329|٣٢٩]] | حرف =  }}
''' لیست آیات '''
{| width="75%"
| {{#ask:[[کلمه غیر ربط::+]] [[رده:سوره القلم]]
|?کلمه غیر ربط|format=tagcloud
|limit=250
|link=all
|tagorder=alphabetical
|widget=sphere
|font=arial
|height=400
|width=400
|mincount=1
|minsize=70
|maxsize=220
|maxtags=600
}}
|
{|
 
|- align="center"
|''' لیست آیات '''
[[ القلم ١ | ١ ]] [[ القلم ٢ | ٢ ]] [[ القلم ٣ | ٣ ]] [[ القلم ٤ | ٤ ]] [[ القلم ٥ | ٥ ]] [[ القلم ٦ | ٦ ]] [[ القلم ٧ | ٧ ]] [[ القلم ٨ | ٨ ]] [[ القلم ٩ | ٩ ]] [[ القلم ١٠ | ١٠ ]] [[ القلم ١١ | ١١ ]] [[ القلم ١٢ | ١٢ ]] [[ القلم ١٣ | ١٣ ]] [[ القلم ١٤ | ١٤ ]] [[ القلم ١٥ | ١٥ ]] [[ القلم ١٦ | ١٦ ]] [[ القلم ١٧ | ١٧ ]] [[ القلم ١٨ | ١٨ ]] [[ القلم ١٩ | ١٩ ]] [[ القلم ٢٠ | ٢٠ ]] [[ القلم ٢١ | ٢١ ]] [[ القلم ٢٢ | ٢٢ ]] [[ القلم ٢٣ | ٢٣ ]] [[ القلم ٢٤ | ٢٤ ]] [[ القلم ٢٥ | ٢٥ ]] [[ القلم ٢٦ | ٢٦ ]] [[ القلم ٢٧ | ٢٧ ]] [[ القلم ٢٨ | ٢٨ ]] [[ القلم ٢٩ | ٢٩ ]] [[ القلم ٣٠ | ٣٠ ]] [[ القلم ٣١ | ٣١ ]] [[ القلم ٣٢ | ٣٢ ]] [[ القلم ٣٣ | ٣٣ ]] [[ القلم ٣٤ | ٣٤ ]] [[ القلم ٣٥ | ٣٥ ]] [[ القلم ٣٦ | ٣٦ ]] [[ القلم ٣٧ | ٣٧ ]] [[ القلم ٣٨ | ٣٨ ]] [[ القلم ٣٩ | ٣٩ ]] [[ القلم ٤٠ | ٤٠ ]] [[ القلم ٤١ | ٤١ ]] [[ القلم ٤٢ | ٤٢ ]] [[ القلم ٤٣ | ٤٣ ]] [[ القلم ٤٤ | ٤٤ ]] [[ القلم ٤٥ | ٤٥ ]] [[ القلم ٤٦ | ٤٦ ]] [[ القلم ٤٧ | ٤٧ ]] [[ القلم ٤٨ | ٤٨ ]] [[ القلم ٤٩ | ٤٩ ]] [[ القلم ٥٠ | ٥٠ ]] [[ القلم ٥١ | ٥١ ]] [[ القلم ٥٢ | ٥٢ ]]  
[[ القلم ١ | ١ ]] [[ القلم ٢ | ٢ ]] [[ القلم ٣ | ٣ ]] [[ القلم ٤ | ٤ ]] [[ القلم ٥ | ٥ ]] [[ القلم ٦ | ٦ ]] [[ القلم ٧ | ٧ ]] [[ القلم ٨ | ٨ ]] [[ القلم ٩ | ٩ ]] [[ القلم ١٠ | ١٠ ]] [[ القلم ١١ | ١١ ]] [[ القلم ١٢ | ١٢ ]] [[ القلم ١٣ | ١٣ ]] [[ القلم ١٤ | ١٤ ]] [[ القلم ١٥ | ١٥ ]] [[ القلم ١٦ | ١٦ ]] [[ القلم ١٧ | ١٧ ]] [[ القلم ١٨ | ١٨ ]] [[ القلم ١٩ | ١٩ ]] [[ القلم ٢٠ | ٢٠ ]] [[ القلم ٢١ | ٢١ ]] [[ القلم ٢٢ | ٢٢ ]] [[ القلم ٢٣ | ٢٣ ]] [[ القلم ٢٤ | ٢٤ ]] [[ القلم ٢٥ | ٢٥ ]] [[ القلم ٢٦ | ٢٦ ]] [[ القلم ٢٧ | ٢٧ ]] [[ القلم ٢٨ | ٢٨ ]] [[ القلم ٢٩ | ٢٩ ]] [[ القلم ٣٠ | ٣٠ ]] [[ القلم ٣١ | ٣١ ]] [[ القلم ٣٢ | ٣٢ ]] [[ القلم ٣٣ | ٣٣ ]] [[ القلم ٣٤ | ٣٤ ]] [[ القلم ٣٥ | ٣٥ ]] [[ القلم ٣٦ | ٣٦ ]] [[ القلم ٣٧ | ٣٧ ]] [[ القلم ٣٨ | ٣٨ ]] [[ القلم ٣٩ | ٣٩ ]] [[ القلم ٤٠ | ٤٠ ]] [[ القلم ٤١ | ٤١ ]] [[ القلم ٤٢ | ٤٢ ]] [[ القلم ٤٣ | ٤٣ ]] [[ القلم ٤٤ | ٤٤ ]] [[ القلم ٤٥ | ٤٥ ]] [[ القلم ٤٦ | ٤٦ ]] [[ القلم ٤٧ | ٤٧ ]] [[ القلم ٤٨ | ٤٨ ]] [[ القلم ٤٩ | ٤٩ ]] [[ القلم ٥٠ | ٥٠ ]] [[ القلم ٥١ | ٥١ ]] [[ القلم ٥٢ | ٥٢ ]]  
|}
|}
==متن سوره==
{{قاب | متن = [[ القلم ١ | بِسمِ اللَّهِ الرَّحمٰنِ الرَّحيمِ ن وَ القَلَمِ وَ ما يَسطُرونَ (١) ]] }}
ن، سوگند به قلم و آنچه (با آن) می‌نگارند،
{{قاب | متن = [[ القلم ٢ | ما أَنتَ بِنِعمَةِ رَبِّكَ بِمَجنونٍ (٢) ]] }}
که) تو، با نعمت (پرورش وحی از) پروردگارت، دیوانه نیستی.
{{قاب | متن = [[ القلم ٣ | وَ إِنَّ لَكَ لَأَجرًا غَيرَ مَمنونٍ (٣) ]] }}
و بی‌گمان، تو را همواره پاداشی بی‌‌منت و پایدار است.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤ | وَ إِنَّكَ لَعَلىٰ خُلُقٍ عَظيمٍ (٤) ]] }}
(که) در کدام یک از شما (عقلی) آتشبار (و) آشفته است.
{{قاب | متن = [[ القلم ٥ | فَسَتُبصِرُ وَ يُبصِرونَ (٥) ]] }}
و به‌راستی که تو بر خُلقی بس بزرگ سلطه داری.
{{قاب | متن = [[ القلم ٦ | بِأَييِكُمُ المَفتونُ (٦) ]] }}
پس به زودی خواهی دید و خواهند دید،
{{قاب | متن = [[ القلم ٧ | إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبيلِهِ وَ هُوَ أَعلَمُ بِالمُهتَدينَ (٧) ]] }}
همانا پروردگارت، (هم)او بهتر می‌داند چه کسی از راهش منحرف شده، و (هم) او به راه‌یافتگان داناتر است.
{{قاب | متن = [[ القلم ٨ | فَلا تُطِعِ المُكَذِّبينَ (٨) ]] }}
پس، از تکذیب‌کنندگان فرمان مبر.
{{قاب | متن = [[ القلم ٩ | وَدّوا لَو تُدهِنُ فَيُدهِنونَ (٩) ]] }}
دوست داشتند اگر (با آنان) نرمی کنی تا (با تو) نرمی نمایند.
{{قاب | متن = [[ القلم ١٠ | وَ لا تُطِع كُلَّ حَلّافٍ مَهينٍ (١٠) ]] }}
و از هر قسم‌خورنده‌ی بی‌مبالات بس فرومایه‌ای فرمان مبر،
{{قاب | متن = [[ القلم ١١ | هَمّازٍ مَشّاءٍ بِنَميمٍ (١١) ]] }}
(که) بسیار عیب‌جوست و برای خبرچینی پیاپی گام برمی‌دارد،
{{قاب | متن = [[ القلم ١٢ | مَنّاعٍ لِلخَيرِ مُعتَدٍ أَثيمٍ (١٢) ]] }}
و بسی مانع از خیر، متجاوز و گناه‌پیشه است،
{{قاب | متن = [[ القلم ١٣ | عُتُلٍّ بَعدَ ذٰلِكَ زَنيمٍ (١٣) ]] }}
ترک‌کننده‌ی تمامی فضیلت‌ها و عمل‌کننده‌ی به همه‌ی رذیلت‌ها (و) پس از آن بی‌تبار است.
{{قاب | متن = [[ القلم ١٤ | أَن كانَ ذا مالٍ وَ بَنينَ (١٤) ]] }}
(برای) اینکه صاحب مال و پسرانی بوده،
{{قاب | متن = [[ القلم ١٥ | إِذا تُتلىٰ عَلَيهِ إيٰتُنا قالَ أَسٰطيرُ الأَوَّلينَ (١٥) ]] }}
هنگامی که آیاتمان بر او خوانده شود گوید: «(این‌ها) افسانه‌های پیشینیان است.»
{{قاب | متن = [[ القلم ١٦ | سَنَسِمُهُ عَلَى الخُرطومِ (١٦) ]] }}
زودا که بر (بینی همچون) خرطوم(اش) داغ (رسوایی) نهیم.
{{قاب | متن = [[ القلم ١٧ | إِنّا بَلَونٰهُم كَما بَلَونا أَصحٰبَ الجَنَّةِ إِذ أَقسَموا لَيَصرِمُنَّها مُصبِحينَ (١٧) ]] }}
ما بی‌گمان آنان را همان گونه که باغداران را آزمودیم، -چون سوگند خوردند بی‌چون صبحگاهان برخیزند و (میوه‌ی) آن (باغ) را همواره برچینند- مورد آزمایش قرار دادیم.
{{قاب | متن = [[ القلم ١٨ | وَ لا يَستَثنونَ (١٨) ]] }}
حال آنکه (این اموال را برای بینوایان) استثنا نکنند.
{{قاب | متن = [[ القلم ١٩ | فَطافَ عَلَيها طائِفٌ مِن رَبِّكَ وَ هُم نائِمونَ (١٩) ]] }}
پس در حالی که آنان خواب بودند، (بلای) گردشگری (بر سروسامانشان) از جانب پروردگارت بر آن (باغ) به گردش درآمد.
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٠ | فَأَصبَحَت كَالصَّريمِ (٢٠) ]] }}
پس (آن) باغ (آکنده) همچون برکنده شد.
{{قاب | متن = [[ القلم ٢١ | فَتَنادَوا مُصبِحينَ (٢١) ]] }}
پس (باغداران) بامدادان یکدیگر را ندا در دادند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٢ | أَنِ اغدوا عَلىٰ حَرثِكُم إِن كُنتُم صٰرِمينَ (٢٢) ]] }}
که: « اگر میوه‌چین هستید بامدادان سوی کشت خویش روید.»
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٣ | فَانطَلَقوا وَ هُم يَتَخٰفَتونَ (٢٣) ]] }}
پس (خستند و) رستند درحالی که (خود را از بینوایان) بسی پنهان می‌کردند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٤ | أَن لا يَدخُلَنَّهَا اليَومَ عَلَيكُم مِسكينٌ (٢٤) ]] }}
که: «امروز هرگز نباید در باغ، بینوایی بر (مَنظر) شما درآید.»
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٥ | وَ غَدَوا عَلىٰ حَردٍ قٰدِرينَ (٢٥) ]] }}
و صبحگاهان در حالی که خود را بر منع (بینوایان) توانایان و تقدیرکنان می‌دیدند، رفتند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٦ | فَلَمّا رَأَوها قالوا إِنّا لَضالّونَ (٢٦) ]] }}
پس چون آنان را دیدند گفتند: «همواره ما همی (از) گمراهانیم.»
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٧ | بَل نَحنُ مَحرومونَ (٢٧) ]] }}
«(نه!) بلکه ما (از) محرومانیم.»
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٨ | قالَ أَوسَطُهُم أَلَم أَقُل لَكُم لَولا تُسَبِّحونَ (٢٨) ]] }}
میانه‌روتر‌شان گفت: «آیا به شما نگفتم (چرا خدا را) به پاکی نمی‌ستایید؟»
{{قاب | متن = [[ القلم ٢٩ | قالوا سُبحٰنَ رَبِّنا إِنّا كُنّا ظٰلِمينَ (٢٩) ]] }}
گفتند: «پروردگارمان! تو را به پاکی می‌ستاییم‌. ما همانا ستمگران بوده‌ایم.»
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٠ | فَأَقبَلَ بَعضُهُم عَلىٰ بَعضٍ يَتَلٰوَمونَ (٣٠) ]] }}
پس بعضیشان رو به بعضی دیگر آوردند، در حالی که همدیگر را به نکوهش گرفتند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٣١ | قالوا يٰوَيلَنا إِنّا كُنّا طٰغينَ (٣١) ]] }}
گفتند: «ای وای برما که همواره سرکش بوده‌ایم!»
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٢ | عَسىٰ رَبُّنا أَن يُبدِلَنا خَيرًا مِنها إِنّا إِلىٰ رَبِّنا رٰغِبونَ (٣٢) ]] }}
«امید است که پروردگارمان بهتر از آن را به ما عوض دهد. ما به‌راستی سوی پروردگارمان مشتاقانیم.»
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٣ | كَذٰلِكَ العَذابُ وَ لَعَذابُ الإخِرَةِ أَكبَرُ لَو كانوا يَعلَمونَ (٣٣) ]] }}
عذاب (دنیا) چنان است، و عذاب آخرت - اگر می‌دانستند- بی‌چون بزرگتر است.
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٤ | إِنَّ لِلمُتَّقينَ عِندَ رَبِّهِم جَنّٰتِ النَّعيمِ (٣٤) ]] }}
بی‌گمان برای پرهیزگاران، نزد پروردگارشان باغستان‌های پرناز و نعمت است.
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٥ | أَفَنَجعَلُ المُسلِمينَ كَالمُجرِمينَ (٣٥) ]] }}
پس آیا فرمانبرداران را چون مجرمان و (نافرمانان) قرار خواهیم داد؟
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٦ | ما لَكُم كَيفَ تَحكُمونَ (٣٦) ]] }}
شما را چه شده‌؟ چگونه داوری می‌کنید؟
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٧ | أَم لَكُم كِتٰبٌ فيهِ تَدرُسونَ (٣٧) ]] }}
یا شما را کتابی (وحیانی) است که در آن (وحی) فرا می‌گیرید،
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٨ | إِنَّ لَكُم فيهِ لَما تَخَيَّرونَ (٣٨) ]] }}
که هرچه را برمی‌گزینید، بی‌گمان برای شما در آن (کتاب) خواهد بود؟
{{قاب | متن = [[ القلم ٣٩ | أَم لَكُم أَيمٰنٌ عَلَينا بٰلِغَةٌ إِلىٰ يَومِ القِيٰمَةِ إِنَّ لَكُم لَما تَحكُمونَ (٣٩) ]] }}
یا اینکه شما تا روز قیامت (از ما) سوگندهایی رسا گرفته‌اید که هر چه دلتان خواست همواره (به آن) حکم کنید؟
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٠ | سَلهُم أَيُّهُم بِذٰلِكَ زَعيمٌ (٤٠) ]] }}
از آنان بپرس کدامشان بدین گمان است؟
{{قاب | متن = [[ القلم ٤١ | أَم لَهُم شُرَكاءُ فَليَأتوا بِشُرَكائِهِم إِن كانوا صٰدِقينَ (٤١) ]] }}
یا برایشان شریکانی است‌؟ پس اگر راست می‌گویند شریکانشان را بیاورند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٢ | يَومَ يُكشَفُ عَن ساقٍ وَ يُدعَونَ إِلَى السُّجودِ فَلا يَستَطيعونَ (٤٢) ]] }}
روزی که از ساق (و سوق اعمالشان) پرده برگرفته شود به سجده فراخوانده شوند، پس نتوانند (سجده کنند).
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٣ | خٰشِعَةً أَبصٰرُهُم تَرهَقُهُم ذِلَّةٌ وَ قَد كانوا يُدعَونَ إِلَى السُّجودِ وَ هُم سٰلِمونَ (٤٣) ]] }}
چشمانشان خاشعانه [:برهم] است و ذلت آنان را فراگرفته‌. در حالی که همواره به سجود دعوت می‌شدند (سجده نمی‌کردند) با آنکه سالم بودند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٤ | فَذَرنى وَ مَن يُكَذِّبُ بِهٰذَا الحَديثِ سَنَستَدرِجُهُم مِن حَيثُ لا يَعلَمونَ (٤٤) ]] }}
پس مرا رها کن با کسی که به این حدیث (قرآن) تکذیب می‌کند. زودا (که) آنان را در عذاب پیاپی داخل می‌کنیم، بدان گونه که نمی‌دانند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٥ | وَ أُملى لَهُم إِنَّ كَيدى مَتينٌ (٤٥) ]] }}
و برایشان مهلت می‌دهیم. بی‌گمان کید من پای‌برجاست.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٦ | أَم تَسـَٔلُهُم أَجرًا فَهُم مِن مَغرَمٍ مُثقَلونَ (٤٦) ]] }}
یا از آنان اجری می‌خواهی، پس ایشان از زیانشان گران‌بارند.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٧ | أَم عِندَهُمُ الغَيبُ فَهُم يَكتُبونَ (٤٧) ]] }}
یا نزدشان غیب است، پس ایشان (آن را) می‌نویسند؟
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٨ | فَاصبِر لِحُكمِ رَبِّكَ وَ لا تَكُن كَصاحِبِ الحوتِ إِذ نادىٰ وَ هُوَ مَكظومٌ (٤٨) ]] }}
پس برای حکم پروردگارت صبر کن، و مانند همراه ماهی [:یونس] مباش، چون (خدا را) ندا در داد در حالی که غضبش فرونشسته بود.
{{قاب | متن = [[ القلم ٤٩ | لَولا أَن تَدٰرَكَهُ نِعمَةٌ مِن رَبِّهِ لَنُبِذَ بِالعَراءِ وَ هُوَ مَذمومٌ (٤٩) ]] }}
اگر نعمتی از پروردگارش او را در نیافته بود، بی‌گمان در بیابان (خشک و بی‌آب و گیاه) افکنده می‌شد در حالی که مذموم بود.
{{قاب | متن = [[ القلم ٥٠ | فَاجتَبٰهُ رَبُّهُ فَجَعَلَهُ مِنَ الصّٰلِحينَ (٥٠) ]] }}
پس پروردگارش او را برگزید و از شایستگانش نهاد.
{{قاب | متن = [[ القلم ٥١ | وَ إِن يَكادُ الَّذينَ كَفَروا لَيُزلِقونَكَ بِأَبصٰرِهِم لَمّا سَمِعُوا الذِّكرَ وَ يَقولونَ إِنَّهُ لَمَجنونٌ (٥١) ]] }}
و بی‌گمان کسانی که کافر شدند، نزدیکند بی‌امان تو را به هنگامی که ذکر [:قرآن] را شنیدند با چشم‌هایشان متزلزل کنند، و گویند او همواره بس مجنون است.
{{قاب | متن = [[ القلم ٥٢ | وَ ما هُوَ إِلّا ذِكرٌ لِلعٰلَمينَ (٥٢) ]] }}
در حالی که او جز یادواره‌ای برای جهانیان نیست.


==محتوای سوره==
==محتوای سوره==

نسخهٔ کنونی تا ‏۲۲ دی ۱۳۹۵، ساعت ۰۲:۳۸

سوره الملك سوره القلم سوره الحاقة
شماره کتابت : ٦٨
جزء :
نزول
ترتيب نزول : ٢
محل نزول : مكه
اطلاعات آماری
تعداد آیات : ٥٢
تعداد کلمات : ٣٢٩
تعداد حروف :
در حال بارگیری...
لیست آیات

١ ٢ ٣ ٤ ٥ ٦ ٧ ٨ ٩ ١٠ ١١ ١٢ ١٣ ١٤ ١٥ ١٦ ١٧ ١٨ ١٩ ٢٠ ٢١ ٢٢ ٢٣ ٢٤ ٢٥ ٢٦ ٢٧ ٢٨ ٢٩ ٣٠ ٣١ ٣٢ ٣٣ ٣٤ ٣٥ ٣٦ ٣٧ ٣٨ ٣٩ ٤٠ ٤١ ٤٢ ٤٣ ٤٤ ٤٥ ٤٦ ٤٧ ٤٨ ٤٩ ٥٠ ٥١ ٥٢

متن سوره

ن، سوگند به قلم و آنچه (با آن) می‌نگارند،

که) تو، با نعمت (پرورش وحی از) پروردگارت، دیوانه نیستی.

و بی‌گمان، تو را همواره پاداشی بی‌‌منت و پایدار است.

(که) در کدام یک از شما (عقلی) آتشبار (و) آشفته است.

و به‌راستی که تو بر خُلقی بس بزرگ سلطه داری.

پس به زودی خواهی دید و خواهند دید،

همانا پروردگارت، (هم)او بهتر می‌داند چه کسی از راهش منحرف شده، و (هم) او به راه‌یافتگان داناتر است.

پس، از تکذیب‌کنندگان فرمان مبر.

دوست داشتند اگر (با آنان) نرمی کنی تا (با تو) نرمی نمایند.

و از هر قسم‌خورنده‌ی بی‌مبالات بس فرومایه‌ای فرمان مبر،

(که) بسیار عیب‌جوست و برای خبرچینی پیاپی گام برمی‌دارد،

و بسی مانع از خیر، متجاوز و گناه‌پیشه است،

ترک‌کننده‌ی تمامی فضیلت‌ها و عمل‌کننده‌ی به همه‌ی رذیلت‌ها (و) پس از آن بی‌تبار است.

(برای) اینکه صاحب مال و پسرانی بوده،

هنگامی که آیاتمان بر او خوانده شود گوید: «(این‌ها) افسانه‌های پیشینیان است.»

زودا که بر (بینی همچون) خرطوم(اش) داغ (رسوایی) نهیم.

ما بی‌گمان آنان را همان گونه که باغداران را آزمودیم، -چون سوگند خوردند بی‌چون صبحگاهان برخیزند و (میوه‌ی) آن (باغ) را همواره برچینند- مورد آزمایش قرار دادیم.

حال آنکه (این اموال را برای بینوایان) استثنا نکنند.

پس در حالی که آنان خواب بودند، (بلای) گردشگری (بر سروسامانشان) از جانب پروردگارت بر آن (باغ) به گردش درآمد.

پس (آن) باغ (آکنده) همچون برکنده شد.

پس (باغداران) بامدادان یکدیگر را ندا در دادند.

که: « اگر میوه‌چین هستید بامدادان سوی کشت خویش روید.»

پس (خستند و) رستند درحالی که (خود را از بینوایان) بسی پنهان می‌کردند.

که: «امروز هرگز نباید در باغ، بینوایی بر (مَنظر) شما درآید.»

و صبحگاهان در حالی که خود را بر منع (بینوایان) توانایان و تقدیرکنان می‌دیدند، رفتند.

پس چون آنان را دیدند گفتند: «همواره ما همی (از) گمراهانیم.»

«(نه!) بلکه ما (از) محرومانیم.»

میانه‌روتر‌شان گفت: «آیا به شما نگفتم (چرا خدا را) به پاکی نمی‌ستایید؟»

گفتند: «پروردگارمان! تو را به پاکی می‌ستاییم‌. ما همانا ستمگران بوده‌ایم.»

پس بعضیشان رو به بعضی دیگر آوردند، در حالی که همدیگر را به نکوهش گرفتند.

گفتند: «ای وای برما که همواره سرکش بوده‌ایم!»

«امید است که پروردگارمان بهتر از آن را به ما عوض دهد. ما به‌راستی سوی پروردگارمان مشتاقانیم.»

عذاب (دنیا) چنان است، و عذاب آخرت - اگر می‌دانستند- بی‌چون بزرگتر است.

بی‌گمان برای پرهیزگاران، نزد پروردگارشان باغستان‌های پرناز و نعمت است.

پس آیا فرمانبرداران را چون مجرمان و (نافرمانان) قرار خواهیم داد؟

شما را چه شده‌؟ چگونه داوری می‌کنید؟

یا شما را کتابی (وحیانی) است که در آن (وحی) فرا می‌گیرید،

که هرچه را برمی‌گزینید، بی‌گمان برای شما در آن (کتاب) خواهد بود؟

یا اینکه شما تا روز قیامت (از ما) سوگندهایی رسا گرفته‌اید که هر چه دلتان خواست همواره (به آن) حکم کنید؟

از آنان بپرس کدامشان بدین گمان است؟

یا برایشان شریکانی است‌؟ پس اگر راست می‌گویند شریکانشان را بیاورند.

روزی که از ساق (و سوق اعمالشان) پرده برگرفته شود به سجده فراخوانده شوند، پس نتوانند (سجده کنند).

چشمانشان خاشعانه [:برهم] است و ذلت آنان را فراگرفته‌. در حالی که همواره به سجود دعوت می‌شدند (سجده نمی‌کردند) با آنکه سالم بودند.

پس مرا رها کن با کسی که به این حدیث (قرآن) تکذیب می‌کند. زودا (که) آنان را در عذاب پیاپی داخل می‌کنیم، بدان گونه که نمی‌دانند.

و برایشان مهلت می‌دهیم. بی‌گمان کید من پای‌برجاست.

یا از آنان اجری می‌خواهی، پس ایشان از زیانشان گران‌بارند.

یا نزدشان غیب است، پس ایشان (آن را) می‌نویسند؟

پس برای حکم پروردگارت صبر کن، و مانند همراه ماهی [:یونس] مباش، چون (خدا را) ندا در داد در حالی که غضبش فرونشسته بود.

اگر نعمتی از پروردگارش او را در نیافته بود، بی‌گمان در بیابان (خشک و بی‌آب و گیاه) افکنده می‌شد در حالی که مذموم بود.

پس پروردگارش او را برگزید و از شایستگانش نهاد.

و بی‌گمان کسانی که کافر شدند، نزدیکند بی‌امان تو را به هنگامی که ذکر [:قرآن] را شنیدند با چشم‌هایشان متزلزل کنند، و گویند او همواره بس مجنون است.

در حالی که او جز یادواره‌ای برای جهانیان نیست.


محتوای سوره